सास पाकिस्तानी, बहू हिंदुस्तानी...जारी हो गया देश निकाला, बीच मझदार में फंसे कई रिश्ते, अब क्या होगा
Citizenship Crisis: भारत-पाक तनाव के बीच ओडिशा की शारदा बाई को देश छोड़ने का नोटिस मिला। जानिए कैसे दुश्मन देश की नागरिक होते हुए भी वह भारत की बहू बन गईं।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। भारत सरकार के आदेश के बाद देश में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों पर देश छोड़ने का दबाव बढ़ चुका है। इसी बीच, ओडिशा में रह रही शारदा बाई उर्फ शारदा कुकरेजा की दर्दभरी कहानी सामने आई है, जो इस उथल-पुथल में फंस गई हैं।
पाकिस्तान से आईं, भारत में बस गईं शारदा
शारदा का जन्म 1970 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सुक्कुर शहर में हुआ था। उनके पिता 1987 में छह बच्चों के साथ भारत आए थे और ओडिशा के कोरापुट जिले में बस गए। यहीं शारदा की शादी एक भारतीय कारोबारी से हुई। आज उनका पूरा परिवार बेटा, बेटी और पोते-पोतियां भारतीय नागरिक हैं। मगर शारदा के पास अब भी पाकिस्तानी पासपोर्ट है और वीजा वैध नहीं है।
सरकार का नोटिस, अब जाना पड़ेगा देश छोड़कर
गृह मंत्रालय के आदेश के तहत, जिन पाकिस्तानी नागरिकों के पास वैध वीजा नहीं है, उन्हें देश छोड़ने का नोटिस दिया गया है। शारदा को भी जिला पुलिस ने एग्जिट नोटिस भेजा है। नोटिस में साफ कहा गया है कि अगर तय समय सीमा के भीतर वह देश नहीं छोड़तीं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी।
नागरिकता की जद्दोजहद में फंसी शारदा
शारदा का दावा है कि उन्होंने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया था, उनके पास आधार कार्ड और वोटर आईडी भी है। बावजूद इसके उन्हें अब भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। वह कहती हैं, "पाकिस्तान में अब मेरा कोई नहीं है, वहां कौन जानता है मुझे? मेरा पूरा परिवार तो यहीं भारत में है।"
सवालों के घेरे में नागरिकता व्यवस्था
शारदा की कहानी भारत की नागरिकता नीतियों पर भी सवाल खड़े करती है। एक महिला, जिसने अपनी पूरी जिंदगी भारत में बिताई, जिसके बच्चे भारतीय हैं, वह अब कहां जाएगी? शारदा का दर्द उन हजारों पाकिस्तानी हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करता है जो वर्षों से भारत में हैं लेकिन कागजों की जंजीरों में जकड़े हुए हैं।
जंग की कीमत सिर्फ सीमाओं पर नहीं, दिलों पर भी पड़ती है
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव का असर केवल बॉर्डर तक सीमित नहीं है। शारदा बाई जैसी कहानियां बताती हैं कि कैसे राजनीतिक फैसलों का सीधा असर उन निर्दोष लोगों पर पड़ता है जो अपने वतन को छोड़कर एक नई पहचान की तलाश में आए थे।