महाकुंभ, सहस्त्रों वर्षों की परम्परा एवं हिन्दुओं की सांस्कृतिक एकता का अमृतकाल, यहां पढ़े
Date: Feb 07, 2025
By: Nitika Srivastava, Bharatraftar
दिव्य ऊर्जा का केंद्र
महाकुंभ के दौरान विशिष्ट ग्रह-नक्षत्रों के संयोग से पृथ्वी पर दैवीय शक्तियों की विशेष कृपा होती है, जिससे साधना और पुण्यकर्म अत्यधिक प्रभावी होते हैं।
सांस्कृतिक एकता का प्रतीक
यह पर्व भारत के विभिन्न पंथों, जातियों, भाषाओं और संस्कृतियों को एक साथ जोड़कर सनातन धर्म की अखंडता को प्रकट करता है।
तीर्थराज प्रयागराज का महत्व
त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना, सरस्वती) में स्नान से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
शाही स्नान और अखाड़ों का वैभव
विभिन्न अखाड़ों के नागा साधु, संत-महात्मा और सन्यासी अपने अनुयायियों संग भव्य शाही स्नान कर धर्म की विजय का उत्सव मनाते हैं।
दर्शन, सत्संग और साधना का महासंगम
देशभर के संत-महात्मा, महापुरुष और योगी प्रवचनों और सत्संग से धर्म, भक्ति और ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर रहे हैं।
दान और पुण्य कर्म का महत्व
महाकुंभ में किया गया दान, तिल तर्पण, श्राद्ध, जप और हवन अनंतगुना फलदायी होता है, जिससे व्यक्ति अपने पापों से मुक्त होकर पुण्य अर्जित करता है।
राष्ट्रीय और वैश्विक आकर्षण
यह केवल भारत का ही नहीं, बल्कि विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है, जहाँ देश-विदेश से श्रद्धालु, पर्यटक और शोधकर्ता आध्यात्मिकता के इस महासंगम में सम्मिलित होते हैं।
महाशिवरात्रि विशेष
महाकुंभ 2025 में श्रद्धालु महाशिवरात्रि (26 फरवरी 2025) तक पुण्य लाभ अर्जित कर सकते हैं। यह अवसर त्रिवेणी संगम में स्नान, शिव आराधना और मोक्ष प्राप्ति का अद्वितीय काल है।
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