जब पर्ची देखते ही वसुंधरा राजे के बदले हाव-भाव, राजस्थान की राजनीति में आया भूचाल
राजस्थान की राजनीति में बड़ा बदलाव तब आया जब वसुंधरा राजे को दरकिनार कर भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया। जानिए उस पल की पूरी कहानी जब एक पर्ची ने सब कुछ बदल दिया।

राजस्थान के राजनीति में कब क्या हो जाए यह कहना बहुत मुश्किल है। प्रदेश में ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने सत्ता को हिला कर रख दिया। इन्हीं में से एक हैं वसुंधरा राजे। वह ऐसी तैयारी करती हैं जिसकी खबर उनके करीबियों को भी नहीं लगती है। राज्य की कमान किसे देनी है। कौन सा तीर कब चलना है। इससे वह भली-भांति समझती हैं। आज हम वसुंधरा राजे से जुड़ा एक ऐसा ही किस्सा लेकर आए हैं। जहां पर्ची देखते पूर्व मुख्यमंत्री के हाव भाव बदल गए थे और इसने सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा बंटोरी थीं।
देखा जाए तो बीते कुछ सालों में भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री पद के लिए नेता को चुनने के पैटर्न में बदलाव किया है। पहले माना जाता था जिसके पास ज्यादा अनुभव होगा जिसकी जमीनी स्तर पर पकड़ होगी। उसको प्रदेश की चाबी सौंपी जाएगी। लेकिन अब ऐसा नहीं है, छत्तीसगढ़ से लेकर मध्य प्रदेश में बीजेपी ने ऐसे चेहरे को सीएम चुना जो कभी लाइमलाइट में नहीं था। ऐसा ही कुछ राजस्थान में भी देखने को मिला। हर कोई कयास लग रहा था कि वसुंधरा राजे राजस्थान की सीएम बन सकती हैं लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने फैसला बदलते हुए पहली बार सांगानेर सीट से विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया।
वसुंधरा राजे के चेहरे की जब उड़ीं हवाइयां
कई राजनीतिक पंडित भी मान रहे थे कि बीजेपी दो बार की पूर्व मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बन सकती हैं। मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा से पहले एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जहां राजनाथ सिंह के बगल में वसुंधरा राजे बैठी थीं। इस दौरान रक्षा मंत्री ने एक पर्ची महारानी को थमाई। जब चुपके से महारानी ने पर्ची खोलकर देखी, उनके हाव भाव बदल गए। जिससे ये साफ हो गया था, इस बार राजस्थान को नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है। भले वसुंधरा राजे सरकार के इस फैसले से खुश नहीं थी लेकिन उन्होंने पार्टी के अनुशासन का पालन करते हुए कैबिनेट बैठक में भजन लाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव रखा था। सरकार के इस फैसले के कई महीनों तक महारानी और केंद्रीय नेतृत्व में नाराजगी चलती रही और राजे ने पार्टी दूरी बना ली लेकिन समय से बलवान कुछ नहीं होता है। वह फिर से राजनीति में सक्रिय होने के साथ लगातार आलाकमान के संपर्क में हैं।