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राजनीति की राजकुमारी से जननेता बनने तक, वसुंधरा राजे की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं

Vasundhra Raje Biography: राजघराने से राजस्थान की मुख्यमंत्री बनने तक का सफर, वसुंधरा राजे की राजनीतिक कहानी संघर्ष, आत्मबल और सत्ता के संतुलन से भरी है।

राजनीति की राजकुमारी से जननेता बनने तक, वसुंधरा राजे की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं
वसुंधरा राजे का राजनीतिक सफर

कभी घर की किनारी तक नहीं लांघने वाली एक शाही परिवार की बेटी, आज राजस्थान की राजनीति का ऐसा नाम बन चुकी है जिसकी मौजूदगी ही सियासी पारे को चढ़ा देती है। वसुंधरा राजे एक ऐसा नाम, जिसने रियासत की परछाईं से निकलकर जनसत्ता की सड़कों तक खुद को गढ़ा।

राजघराने से आने वाली वसुंधरा का जन्म 8 मार्च 1953 को मुंबई में हुआ। मां विजयाराजे सिंधिया खुद राजनीति में थीं, और पिता माधवराव सिंधिया ग्वालियर के शासक। राजनीति उनके डीएनए में थी, लेकिन उन्होंने इस उत्तराधिकार को महज़ नाम नहीं, मेहनत और मैदान की मिट्टी से हासिल किया।

वसुंधरा राजे की राजनीति की शुरूआत
1984 में वसुंधरा ने भाजपा के साथ सक्रिय राजनीति की शुरुआत की। उस दौर में राजनीति में महिलाओं की संख्या उंगलियों पर गिनी जाती थी। लेकिन वसुंधरा ने संसद के गलियारों में जो आत्मविश्वास दिखाया, उसने साबित किया कि वो सिर्फ नाम की ‘राजकुमारी’ नहीं, एक जमीनी नेता बनने आई हैं।

वसुंधरा ने 2003 में लिखा राजनीति का इतिहास
2003 में उन्होंने राजस्थान की राजनीति का ऐसा अध्याय लिखा, जिसे पलटना कांग्रेस के लिए आसान नहीं था। वो राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं और प्रदेश को ‘बीमारी मुक्त राजस्थान’ और ‘गांवों को सड़कों से जोड़ने’ जैसे अभियानों से एक नई पहचान दी। 2013 में उनकी दूसरी पारी और भी ताकतवर रही राजस्थान में भाजपा को 163 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत मिला।

लेकिन वसुंधरा का राजनीतिक जीवन आसान नहीं रहा। पार्टी के भीतर विरोध, केंद्रीय नेतृत्व से खटपट और स्थानीय नेताओं से टकराव ये सब उन्हें झेलना पड़ा। बावजूद इसके, उन्होंने कभी राजनीति से दूरी नहीं बनाई। जब मंच पर होती हैं तो अब भी भीड़ अपने आप जुट जाती है, और जब नाम लिया जाता है तो ‘मैडम सीएम’ की गूंज आज भी सुनाई देती है।

राजनीति में वसुंधरा राजे का सफर उस मोर की तरह है जो धूप में भी नाचना जानता है, और तूफानों में भी अपनी चाल नहीं बदलता।