जब उठने लगे थे 'महारानी' के सियासी भविष्य पर सवाल, फिर यूं पलट दी बाजी, जानें वसुंधरा राजे से जुड़ा ये दिलचस्प किस्सा
राजस्थान की दमदार नेता वसुंधरा राजे पहचान की मोहताज नहीं है लेकिन एक वक्त ऐसा भी था, जब उनके सियासी भविष्य पर सवाल खड़े किये जा रहे थे। जाने महारानी के राजनीतिक जीवन से जुड़ा ये किस्सा।

जब बात राजस्थान के फायर ब्रांड नेताओं की होती है तो वुसंधरा राजे का नाम लिया जाता है। महारानी सियासत को पलटने का माद्दा रखती हैं। दो बार सूबे की कमान संभालने के साथ उन्होंने अच्छों-अच्छों को परास्त किया है। वह आज भी अपनी बात कहने और केंद्रीय नेतृत्व से बैर लेने में नहीं डरती हैं। शायद ही प्रदेश में कोई ऐसा हो जो वसुंधरा राजे का नाम ना जानता हो लेकिन क्या आप जानते हैं, जो महारानी आज जनता के दिलों में राज करती हैं उन्हें अपना पहला चुनाव हारना पड़ा था। जहां जीत पाने के लिए मेहनत की और खूब पसीना बहाया लेकिन जनता को ये रास ना आया। उनकी हार कारण कोई और नहीं बल्कि राजे के सगे भाई थे। तो चलिए जानते हैं इस सियासी किस्से के बारे में-
वसुंधरा राजे ने की सियासी पारी की शुरुआत
बात 1984 की है। जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में चुनाव होने थे। लोकसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी थी और चुनाव प्रचार जारी था। चुनाव भले पूरे देश में थे लेकिन निगाहें थी तो केवल चंबल के बीहड़ इलाके में पड़ने वाली भिंड दतिया सीट पर। ये सीट शुरू से हाईप्रोफाइल रही है। राजे की मां विजयाराजे सिंधिया यहां से सांसदी का चुनाव जीता था। इस सीट पर राजमाता की पकड़ मानी जाती थी। उन्होंने लोकसभा चुनाव में बेटी वसुंधरा को उतारा। वह जीते के लिए पूरी तरह से आश्वस्त थी लेकिन चुनावी नतीजों ने राजमाता के सपनों को तोड़कर रख दिया।
कृष्ण सिंह जुदैव के हाथों मिली हार
1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद सहानुभूति की लहर थी। राजे को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने कृष्ण सिंह जुदैव को मैदान में उतारा था। जुदैव का साथ खुद राजे के सगे भाई माधवराव सिंधिया दे रहे थे। उन्होंने इसके लिए खूब पसीना बहाया । एक रैली में जुदैवी इमोश्नल हो गए, और उनके आंसू का जनता पर यूं असर हुआ कि चुनावों में वसुंधरा राजे को 90 हजार वोटों से हार मिली। इस हार के बारे में शायद ही राजमाता ने कभी सोचा हो। चुनावी हार के बाद राजमाता ने राजे को डांट भी लगाई थी। यहां तक उस वक्त वसुंधरा के सियासी भविष्य पर भी सवाल खड़े होने लगे। बेटी के राजनीतिक भविष्य को लेकर भैरो सिंह शेखावत से राजामाता ने सलाह ली और राजे को अपने ससुराल धौलपुर वापस भेज दिया। वसुंधरा राजे ने हार नहीं मानी। वह राजनीति में सक्रिय रहीं। वसुंधरा राजे ने 1985 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार भंवरलाल को हरा दिया। बस यही से वसुंधरा राजे से महरानी बनने का सफर शुरू हुआ।