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क्यों ग्वालियर से दूर जाना चाहती थीं वसुंधरा राजे? शादी से भी नहीं मिली खुशी ! जब छलका था 'महारानी' का दर्द

वसुंधरा राजे राजनीतिक जीवन में भले सफल रही हो लेकिन उनकी निजी जिंदगी काटों से भरी रही। यहां तक उन्हें कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी। यहां पढ़ें महारानी के जीवन से जुड़े किस्से।

क्यों ग्वालियर से दूर जाना चाहती थीं वसुंधरा राजे? शादी से भी नहीं मिली खुशी ! जब छलका था 'महारानी' का दर्द

राजस्थान में वसुंधरा राजे का सिक्का चलता है। वह शाही परिवार से ताल्लुक रखती हैं। भले उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली हो लेकिन उनका एक दांव सियासी गलियारों में भूचाल ला देता है। उनकी गिनती देश के फायर ब्रांड नेताओं में की जाती है। वसुंधरा राजे राजनीतिक जीवन में जितना सफल रही उतनी ही परेशानियां उन्हें निजी जीवन में देखनी पड़ी। शादी टूटना और राजपरिवार में पैदा होने पर खुद महारानी ने इंटरव्यू में खुलकर बात की थी।

ग्वालियर से दूर जाना चाहती थी राजे

एक मीडिया चैनल को दिये गये इंटरव्यू में वसुंधरा राजे ने खुलासा किया था, उनका जन्म भले राजपरिवार में हुआ लेकिन वह खुद को हमेशा से एक आम इंसान समझती हैं। उनके लिए शाही जिंदगी पिंजरे की तरह थी। यहां तक वह ग्वालियर से दूर किसी बोर्डिंग स्कूल में पड़ना चाहती थीं लेकिन उस वक्त जल्द शादी का रिवाज था सो शादी भी हो गई। यहां तक राजे ने शादी के बाद बीए की डिग्री ली थी। 

भाई के दबाव में हुई थी शादी !

शो के दौरान महारानी से सवाल किया गया, हर कोई कहता है आप हर काम अपनी मर्जी से करती हैं चाहे ग्वालियर के बाहर पढ़ना या फिर खुद के लिए फैसला लेना। इस वसुंधरा राजे ने जवाब दिया था, 'मुझे अक्सर एक विरोधी के रूप में देखा जाता है लेकिन ये सच नहीं है। मैं उतना ही विरोध करती थी, जितनी सीमा परिवार के द्वारा दी गई थी। कम उम्र में मेरी अरेंज मैरिज हुई थी। परिवार और भाई के दबाव के कारण शादी के लिए हां कहना पड़ा। राजे कहती हैं, मैं हमेशा के एक साधारण जिंदगी चाहती थी। जिसकी कई दोस्त हो, वह आम लड़कियों के तरह खुलकर बात कर सकें लेकिन सबके नसीब में ये नहीं होता। आमतौर में ज्यादातर दोस्त हमारे घर आते थे।'

एक साल भी नहीं टिकी राजे की शादी !

गौरतलब है, 1972 में वसुंधरा राजे की शादी बड़े लग्जरी तरीके से आयोजित की गई थी लेकिन किसी को नहीं पता था ये शादी एक साल भी ज्यादा नहीं टिकेगी। राजे और हेमंत सिंह ने एक-दूसरे से अलग होनी की घोषणा 1973 में की थी। उस वक्त राजे गर्भवती थीं। उन्होंने तलाक के बाद बेटे दुष्यंत सिंह को जन्म दिया। महरानी की मुश्किलें नहीं यहीं नहीं खत्म हुईं। बेटे को उसका हक दिलवाने के लिए उन्होंने बड़ी कानूनी लड़ाई है। आखिर वह कामयाब हुईं और 2007 में अदालत के आदेश के बाद धौलपुर स्थित महल और कई संपत्तियां दुष्यंत सिंह को मिली।