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‘महारानी’ नहीं, 'माँ' कहकर पुकारते हैं समर्थक, जब एक ही रात में बदल गई थी वसुंधरा की सोच

Vasundhra Raje Political Journey: राजघराने की बेटी और राजनीति की महारथी वसुंधरा राजे की दिलचस्प राजनीतिक यात्रा, जिसने राजस्थान की तस्वीर बदल दी।

‘महारानी’ नहीं, 'माँ' कहकर पुकारते हैं समर्थक, जब एक ही रात में बदल गई थी वसुंधरा की सोच
‘महारानी’ नहीं, 'माँ' कहकर पुकारते हैं समर्थक

राजनीति के गलियारों में बहुत सी आवाजें आती हैं, कुछ गूंजती हैं और कुछ इतिहास बन जाती हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। एक ऐसी महिला, जो राजघराने में जन्मी ज़रूर, लेकिन अपनी पहचान राजनीति के सबसे कठिन मोर्चे पर बनाई। आइए जानते हैं वसुंधरा राजे की एक दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी, जो राजनीति में उनके सफर को एक अलग रोशनी में दिखाती है।

"एक रात जो बदल गई थी वसुंधरा की सोच"
साल था 1984। देशभर में राजनीतिक हलचल तेज़ थी और हर तरफ इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे अस्थिर माहौल की चर्चा हो रही थी। उसी समय, महाराज माधवराव सिंधिया की बहन वसुंधरा, जो तब तक राजनीति से दूरी बनाए रखती थीं, दिल्ली में एक चाय पार्टी में मौजूद थीं। वहां बीजेपी के वरिष्ठ नेता भैरों सिंह शेखावत भी मौजूद थे।

किसी ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में वसुंधरा से पूछ लिया, "राजकुमारी जी, राजस्थान की राजनीति में आकर थोड़ी हवा तो बदलिए!" सब हँस दिए, लेकिन शेखावत जी ने गंभीरता से कहा, "राजघरानों की पहचान अब सिर्फ दीवारों पर टंगी तस्वीरें नहीं, बल्कि जनसेवा में होनी चाहिए।"

उस रात वसुंधरा देर तक सोचती रहीं। और यहीं से शुरू हुआ एक ऐसा सफर, जिसने राजस्थान की राजनीति को नया आकार दिया।

जब पहली बार गंगापुर में उतरीं चुनावी मैदान में...
1990 में वसुंधरा ने पहली बार गंगापुर सीट से चुनाव लड़ा। विरोधियों ने तंज कसा, “ये रानी क्या करेगी जनता के बीच?” लेकिन वसुंधरा ने न सिर्फ जीत हासिल की, बल्कि पहले कार्यकाल में ही पानी की आपूर्ति और महिला शिक्षा पर काम कर जनता का विश्वास जीत लिया।

2003: जब ‘राजे’ बनीं ‘राज्य’ की मुखिया
वसुंधरा की सबसे बड़ी राजनीतिक छलांग 2003 में हुई, जब उन्होंने बीजेपी को रिकॉर्ड बहुमत दिलाया और राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। उनके “सूरतगढ़ से उदयपुर तक विकास” के विज़न ने उन्हें जनता की नेता बना दिया। उन्होंने पंचायती राज से लेकर महिला सशक्तिकरण तक कई ऐतिहासिक योजनाएं शुरू कीं।

वसुंधरा की वो योजना जो अब भी याद की जाती है
2008 में उन्होंने ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना’ का सपना देखा, जिसे 2015 में फिर से लॉन्च किया। ये योजना आज भी राजस्थान में जल संरक्षण का एक मॉडल मानी जाती है।

‘महारानी’ नहीं, 'माँ' कहकर पुकारते हैं समर्थक
आज भी कोटा, झालावाड़ और बूंदी में जब वसुंधरा जाती हैं, तो लोग उन्हें ‘महारानी साहिबा’ नहीं, "वसुंधरा माँ" कहकर बुलाते हैं। उनकी सादगी, ज़मीन से जुड़ाव और प्रशासनिक पकड़ ने उन्हें एक भावनात्मक नेता बना दिया है।