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पायलट का दम, 'महरानी' की ललकार, बाबा की चुप्पी... राजस्थान में बड़ा उलटफेर? जानें

राजस्थान की राजनीति में हलचल! सचिन पायलट की रैलियां, वसुंधरा राजे का सक्रिय होना, और किरोड़ी लाल मीणा की चुप्पी ने सियासी पारा हाई कर दिया है। जानिए क्या है राजनीतिक समीकरण।

पायलट का दम, 'महरानी' की ललकार, बाबा की चुप्पी... राजस्थान में बड़ा उलटफेर? जानें

जयपुर। चुनाव प्रचार दिल्ली में चल रहा है लेकिन सियासी पारा राजस्थान में हाई है। लगातार सियासत के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। भजनलाल शर्मा बड़े नेताओं के साथ राष्ट्रीय राजधानी में प्रचार कर रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस को जिताने का दारोमदार सचिन पायलट ने उठा रखा है। कभी राजस्थान, कभी छत्तीसगढ़ तो कभी दिल्ली। एक के बाद एक उनके दौरों ने सियासी जानकारों के भी कान खड़े कर दिये हैं। जहां पायलट जाते हैं, वहां हजारों की भीड़ उनके साथ चल रही है। इससे इतर वसुंधरा राजे भी एक्टिव नजर आ रही हैं। 

कांग्रेस के लिए संजीवनी बनें पायलट

दिल्ली में सचिन पायलट की प्रति जो दीवानगी दिख रही है, उसका असर राजस्थान पर भी पड़ रहा है। माना जा रहा है, जो केंद्रीय नेतृत्व पहले अशोक गहलोत को आंखों का तारा मानता था, अब उनके फेवरेट सचिन पायलट बन चुके हैं। यही कारण हैं, खुद पायलट भी लगातार एक के बाद रैलियां कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाते नजर आ रहे हैं। इससे विपरीत पायलट के समर्थक अभी से उनके सीएम बनने की घोषणा कर चुके हैं हालांकि चुनाव अभी बहुत दूर है लेकिन जिस तरह से माहौल बनाया जा रहे है। ऐसे में अटकले हैं, राजस्थान में कांग्रेस की नैया पार लगाने अब गहलोत से ज्यादा पायलट जरूरी हैं।

फिर से एक्टिव हुईं वसुंधरा राजे

एक तरफ सचिन पायलट एक्टिव नजर आ रहे हैं तो दूसरी वसुंधरा राजे भी राजनीति फिर से सक्रिय हो गई हैं। जोधुपर, जालोर, नागौर और झालावाड़ के एक के बाद एक दौरे कर महारानी सभी को हैरान कर दिया। कई सियासी पंडित इसे 2028 के चुनावों से जोड़कर देख रहे हैं। मानना है, राजे अभी से सियासी जमीन मजबूत करना शुरू कर दिया है हालांकि ये कितना सही और वह क्या खेल करने वाली है। इसे कोई भी जानता। 

किरोड़ी लाल मीणा ने साधी चुप्पी !

एक तरफ राजस्थान के बड़े नेता राजनीति में सक्रिय दिखाई दे रहे हैं तो वही अक्स सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले किरोड़ी लाल अपनी चुप्पी से सभी को हैरान कर रहे हैं। पहले वैराग्य लेने की बात फिर पद से इस्तीफा देने पर कायम रहना। उनके सियासी भविष्य पर भी सवाल खड़ा कर रहा है। आन वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति में कई बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।