Rajasthan: भजनलाल शर्मा नहीं संभले तो होगा राजे- गहलोत वाला हाल! बीजेपी सरकार के लिए खतरे की घंटी?
राजस्थान की राजनीति में किरोड़ी लाल मीणा के वैराग्य और विजय बैंसला के बागी तेवर के बीच, क्या भजनलाल सरकार के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं? ये बीजेपी के लिए गले की फांस बन सकती है। जानें कैसे?

जयपुर। राजस्थान में सियासत गरमा गई है। एक तरफ किरोड़ी लाल मीणा इशारों-इशारों में राजनीति छोड़ वैराग्य लेने की बात कह रहे हैं तो अब दूसरी तरफ पार्टी के बड़े गुर्जर नेता विजय बैंसला बागी सुर अख्तियार किये हुए हैं। क्या आने वाले दिनों में सूबे की राजनीति में बड़ा बदलाव होगा या फिर भजनलाल सरकार के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। जो आगामी सालों में बीजेपी की राह मुश्किल कर सकता है।
बाबा और बेंसला के बगावती सुर !
बता दें, बीते दिनों किरोड़ी लाल मीणा वैराग लेनी की बात कर रहे हैं तो विजय बैंसला ने कहा, राज्यमंत्री पद देने के लिए पार्टी का आभार लेकिन अब इसे बढ़ाया जाना चाहिए। अब समाज के लोग कहने लगे हैं, प्रतिनिधित्व अच्छा चाहिए। यहां तक तक ठीक था लेकिन बाद में 'बोल गुर्जर मन की बात'में ऐसी बात कह दी जो अब चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। बैंसला ने कहा, सरकार गुर्जर समाज को हल्के में लेने की कोशिश बिल्कुल न करें। हम पटरियों में बैठना जानते हैं। बता दें, जब भी गुर्जर समाज एक साथ आगे आया है। सूबे की सियासत में बड़ा बदलाव जरूर हुआ है।
वसुंधरा राजे को भुगतना पड़ा अंजाम !
राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे 2003 से सक्रिय हैं। दो बार सत्ता उनके हाथ में रही। ये तब संभव हो पाया जब गुर्जर समाज का साथ मिला। 2003 में जब उन्होंने सियासी बागडोर शुरू की तो राजपूत समुदाय ने बेटी, जाट ने बहू और और गुर्जर समुदाय ने समधन मानते हुए महारानी को हाथों-हाथ लिया। इस जोड़ का असर चुनावी नतीजों में साफ दिखाई दिया और बीजेपी के खाते में 120 सीटें आ गईं। नतीजा रहा, महारानी राजस्थान की सीएम बनें लेकिन 2007 आते-आते यही गुर्जर राजे के खिलाफ हो गए। जिसका मुख्य कारण गुर्जरों आरक्षण आंदोलन रहा। सरकार की कार्रवाई ने गुर्जर समाज को आहत कर दिया। मीडिया रिपोर्ट्स बताती है, लोगों को तितर-बितर करने के लिए प्रशासन ने फायरिंग की थी। जिस कारण 73 लोगों की जान चली गई और आगामी चुनाव में बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी। वसुंधरा राजे इस बात को भांप चुकी थीं। अगर सत्ता में रहना है तो गुर्जर समुदाय का साथ जरूरी है। यही वजह रही 2013-18 के बीच महारानी की कैबिनेट में गुर्जर समुदायर के बड़े नेता हेम सिंह भड़ाना और कालूलाल गुर्जर को जगह दी गई।
अशोक गहलोत को उठाना पड़ा खामियाजा !
2018 में वसुंधर राजे सत्ता से बेदखल हुईं और कांग्रेस सरकार आईं। इसका श्रेय प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट कोद दिय गया। पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस का जादू चला। अलवर, बूंदी, दौसा,धौलपुर, सवाई माधोपुर और टोंक जैसी कई सीटों पर जीत हासिल की। पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस पायलट की बदौलत 42 में से 29 पर जीतने में कामयाब रही थी। हालांकि इसके बाद जो कुछ हुआ। वो सभी ने देखा, पायलट और अशोक गहलोत आमने-सामने आ गए। खुल मंचों पर कई बार गहलोत ने पायलट का अपमान किया। बस यही बेरूखी 2023 के चुनावों में कांग्रेस को ले डूबी। 2018 में पूर्वी राजस्थान में 29 सीटों जीतने वाली कांग्रेस 19 पर सिमट गई।
अब क्या करेगी भजनलाल सरकार ?
तो देखा आपने चाहे वसुंधरा राजे हो या फिर अशोक गहलोत जब भी गुर्जर समाज या फिर उनके बड़े नेता खफा हुए हैं तो चुनावी में राजनीतिक दलों को नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में विजय बैंसला के तेवर पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। देखना होगा, भजनलाल सरकार बैंसला को किस तरह मनाने में कामयाब होती है। अगर वह नहीं मानते हैं तो 2028 के चुनावों में इसका असर नजर आ सकता है।