Rajasthan: बीजेपी सांसद-राजकुमार रोत के बीच 'हॉट टॉक', भड़के BAP प्रमुख, कह दी ये बड़ी बात
मन्नालाल रावत और राजकुमार रोत के बीच संसद में गरमागरम बहस। मानवशास्त्र विषय को लेकर बीजेपी और बीएपी नेता आमने-सामने। जानिए क्या हैं आदिवासी संस्कृति और शिक्षा नीति से जुड़े मुद्दे।

जयपुर। प्रदेश की राजनीति में किरोड़ी लाल मीणा के मुद्दे पर कांग्रेस-बीजेपी आमने-सामने थे कि अब अन्य नेताओं के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। दरअसल, मन्नालाल रावत और राजकुमार रोत के बीच जमकर बयानबाजी हो रही है। जिसके बाद मामला गरमा गया। बता दें, लोकसभा सत्र के दौरान बीजेपी सांसद रावत ने देश में शैक्षिक और सांस्कृतिक नीतियों को नया स्वरूप के लिए सदन में कई मांगे रखी थी। उन्होंने इस दौरान मानवशास्त्र विषय को हटाने की मांग की थी। जिस पर अब बीएपी प्रमुख रोत ने सवाल खड़े किये हैं। तो बवाल मच गया और सदन में दोनों के बीच जमकर बहसबाजी देखने को मिली।
सदन में क्या बोले मन्नालाल रावत
बीजेपी सांसद ने कहा कि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में ऐसे पाठ्यक्रम शामिल होने चाहिए जो इस दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करें कि आदिवासी हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. जीएस धुर्वे के पाठ्यक्रम "आदिवासी हिंदू हैं" को भी सभी विश्वविद्यालय में पढ़ा जाना चाहिए। देशभर में आदिवासियों में भेद करने के लिए मानवशास्त्र में अलग से आदिवासी समाज को पढ़ाया जाता है। जबकि शेष समाज को समाजशास्त्र में पढ़ाया जाता है। सांसद ने मांग की थी कि यह विषय आने वाले समय में समाप्त होना चाहिए। इसी मांग पर बीएपी सांसद ने आपत्ति जाहिर की।
रावत की मांग से सहमत नहीं रोत
रोत ने कहा, "उदयपुर सांसद महोदय संसद में एंथ्रोपोलॉजी (मानवशास्त्र) को खत्म करने की बात करते हैं तो कभी मानगढ़ के इतिहास को पाठ्यक्रम से हटाने की बात करते हैं। कुछ समय पहले आदिवासी शब्द का उपयोग और विश्व आदिवासी दिवस मनाने वाले लोगों को देशद्रोही कहते थे। अब जो विषय मानव विज्ञान का व्यवस्थित अध्ययन करवाता है, उसी विषय को भारत में बन्द करवाने की बात कर रहे हैं। "
दोनों के बीच जारी जुबानी जंग
राजकुमार रोत के बयान के बाद मन्नालाल रावत ने पलटवार करते हुए कहा, आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर विवेक से चर्चा के बाद मैंने यह विषय लोकसभा में उठाया थालेकिन जो कि चर्च की ही राजनीतिक इकाई थी, उसके अवशेष को समर्थन करने के लिए एक महारथी मैदान मे आ गया। इनको समझाना चाहिए कि एंथ्रोपोलॉजी सबसे पहले जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का भाग था, जो 1916 में भारत में लाया गया था। जूलॉजी में प्राणियों का अध्ययन होता है. इसी को षडयंत्रपूर्वक बाद में विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाने लगा। बीजेपी सांसद यही नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा, यह महत्वपूर्ण है कि समाजशास्त्र में जिन समाजों को पढ़ाया जाता है, उसमें आदिवासी समाज को नहीं पढ़ाया जाता। यह अलगाव का बीज अंग्रेजों की देन थी और यह स्पष्ट है कि अंग्रेज चर्च की सत्ता थी अब आप सभी सोचिए यह नए नारे वाला इकोसिस्टम किसकी मार्केटिंग कर रहा है।