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राजस्थान के जिलों को लेकर सियासी घमासान, भजनलाल और गहलोत के बीच बढ़ी तनातनी, बैरवा नहीं बचा पाए अपना जिला – डोटासरा

Rajasthan Politics: भजनलाल सरकार के फैसले ने राजस्थान की राजनीति में उबाल ला दिया है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस निर्णय को लेकर भजनलाल सरकार पर तीखा हमला बोला है।

राजस्थान के जिलों को लेकर सियासी घमासान, भजनलाल और गहलोत के बीच बढ़ी तनातनी, बैरवा नहीं बचा पाए अपना जिला – डोटासरा

Rajasthan Politics: राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर से भूचाल आ गया है। गहलोत सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में, जब उसने राजस्थान के 17 नए जिलों और तीन संभागों के गठन की घोषणा की थी, तब ये कदम न केवल सत्ता की राजनीति बल्कि जनहित में भी महत्वपूर्ण माना गया था। लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार ने एक निर्णायक कदम उठाते हुए इन नए जिलों और संभागों पर कैंची चला दी है। इस फैसले ने राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है, और विपक्ष इसे जनविरोधी और अनावश्यक कदम मानते हुए इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन करने की घोषणा कर चुका है।

गहलोत सरकार का बड़ा कदम और भजनलाल की काट

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में 2023 में 17 नए जिले और तीन नए संभाग बनाए गए थे। ये निर्णय गहलोत सरकार के लिए राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि उन्होंने इसे प्रशासनिक और विकासात्मक दृष्टि से उठाया था, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासनिक कामकाज में सुधार हो सके और लोगों को बेहतर सुविधा मिल सके। हालांकि, सत्ता बदलने के बाद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इन जिलों की समीक्षा के लिए एक मंत्रीस्तरीय कमेटी का गठन किया। कमेटी की सिफारिशों के बाद, भजनलाल सरकार ने 17 नए जिलों में से 9 जिलों और तीन नए संभागों को खत्म करने का फैसला लिया। इसके परिणामस्वरूप राज्य में अब 41 जिले और 7 संभाग रह गए हैं।

विपक्ष का तगड़ा विरोध

भजनलाल सरकार के इस फैसले ने राजस्थान की राजनीति में उबाल ला दिया है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस निर्णय को लेकर भजनलाल सरकार पर तीखा हमला बोला है। डोटासरा ने इसे जनविरोधी और असंवेदनशील कदम बताया।

उनका कहना था, "देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार पूरा भी नहीं हुआ था, और भजनलाल सरकार ने ये निर्णय ले लिया। ये न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश के प्रति असंवेदनशीलता का प्रतीक है।" उन्होंने ये भी कहा कि गहलोत सरकार ने इन जिलों की सिफारिश रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों की कमेटी से की थी, जो जनता की मांग पर आधारित थी। इसलिए भजनलाल सरकार का ये कदम जनमानस के खिलाफ है और कांग्रेस पार्टी इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। 

टीकाराम जूली ने भी आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री भजनलाल ने अपने गृह जिले भरतपुर से डीग जिले को बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जबकि डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा का चुनावी क्षेत्र दूदू जिले को खत्म कर दिया। जूली ने ये तंज भी किया कि प्रेमचंद बैरवा, जो डिप्टी सीएम रहते हुए अपने जिले को बचाने में नाकाम रहे, अब इस फैसले के खिलाफ कुछ नहीं कह सकते।

क्या है असली वजह?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भजनलाल सरकार के इस फैसले के पीछे केवल प्रशासनिक कारण नहीं हो सकते हैं। इसे राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण शक्ति संतुलन के रूप में देखा जा सकता है। गहलोत सरकार द्वारा बनाए गए नए जिलों का वितरण मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में किया गया था जहां कांग्रेस का दबदबा था। अब भाजपा के सत्ता में आते ही उन जिलों को समाप्त कर देना, दरअसल भाजपा की अपनी राजनीतिक लाइन को मजबूत करने का एक तरीका हो सकता है। इसके अलावा, राजस्थान में विधानसभा चुनाव करीब हैं, और भाजपा ने इस फैसले को एक रणनीति के रूप में पेश किया है। भाजपा की कोशिश है कि वो उन क्षेत्रों में अपनी स्थिति को मजबूत करे जहां कांग्रेस के द्वारा नया जिला घोषित किया गया था।

सत्ता संघर्ष और जातीय समीकरण

राजस्थान में जातीय समीकरण भी एक बड़ा मुद्दा रहा है। डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा, जो कि दलित समुदाय से आते हैं, दूदू जिले को अपनी राजनीतिक पहचान का हिस्सा मानते थे। इस जिले को समाप्त कर दिया जाना, बैरवा के लिए व्यक्तिगत रूप से भी बड़ा आघात हो सकता है। विपक्ष का आरोप है कि भजनलाल सरकार ने इस कदम से बैरवा को राजनीतिक रूप से कमजोर करने का प्रयास किया है। इसी प्रकार, सरकार ने कई जिलों को वापस लेने के निर्णय में उन क्षेत्रों की आवाज़ों को नजरअंदाज किया है जहां दलित और पिछड़ा वर्ग अधिक संख्या में हैं। यही कारण है कि विपक्ष ने इसे एक जातिवादी और भेदभावपूर्ण कदम करार दिया है।

भविष्य में क्या होगा?

राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए, ये मामला एक अहम राजनीतिक टर्निंग पॉइंट बन सकता है। कांग्रेस अब भाजपा सरकार के इस कदम के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन करने का इरादा रखती है। यदि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे को जन आंदोलन बना पाते हैं, तो ये आगामी चुनावों में भाजपा के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन सकता है। ये कहना गलत नहीं होगा कि राजस्थान में जिलों का ये विवाद केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीति के बड़े समीकरणों से भी जुड़ा हुआ है। भजनलाल सरकार के फैसले ने राज्य की राजनीति में एक नई धारा शुरू की है, जिसे अब जनता के बीच कितना समर्थन मिलेगा, ये भविष्य के चुनावों में ही साफ होगा।

सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संघर्ष तेज
राजस्थान में जिलों के गठन और निरस्तीकरण के फैसले ने प्रदेश की राजनीति को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। इस विवाद ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संघर्ष को तीव्र कर दिया है, और ये देखा जाना है कि चुनावों में इसका क्या असर पड़ता है।