राहुल गांधी को समझ क्यों नहीं आ रही मोदी सरकार की चुप्पी की चाल? जानिए असली कहानी
India US tariff war: अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी भारत के लिए संकट नहीं, सुनहरा मौका बन सकती है। जानिए मोदी सरकार की रणनीति और राहुल गांधी की प्रतिक्रिया के बीच का सच।

जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया भर के देशों पर भारी टैरिफ लगाने की घोषणा की, तो पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था में खलबली मच गई। चीन से लेकर यूरोपी संघ और ब्रिटेन तक—सबको टक्कर दे बैठे ट्रंप। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। हमारे उत्पादों पर 26% का आयात शुल्क लगाया गया, जिससे संसद में बहस छिड़ गई और विपक्षी नेता राहुल गांधी ने सरकार से तत्काल जवाब की मांग की।
लेकिन मोदी सरकार की चुप्पी यूं ही नहीं है। यह चुप्पी रणनीतिक है, एक ऐसा ‘वेट एंड वॉच’ जो कूटनीति के गलियारों में सुनाई नहीं देती, बल्कि महसूस की जाती है। सरकार सीधे टकराव से बचते हुए बैकडोर से अमेरिकी अधिकारियों से संवाद साध रही है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी समकक्ष से हाल ही में बातचीत की, और जल्द ही ट्रेड डील पर सहमति की उम्मीद है।
जहां पूरी दुनिया टैरिफ के भार से दब गई है, भारत मौके तलाशने में जुट गया है। ट्रंप की नीति ने चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों पर भारत से कहीं ज्यादा टैरिफ लगा दिया है—कुछ पर तो 50% तक। ऐसे में अमेरिकी बाजार में भारतीय कपड़े सस्ते और आकर्षक हो सकते हैं। इस समय अमेरिका भारत के कपड़ा निर्यात में 28% हिस्सेदारी रखता है, ऐसे में वहां निर्यात में ज़बरदस्त उछाल आ सकता है।
यही नहीं, भारत घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए आयात शुल्कों में बदलाव कर सकता है, जिससे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को ताकत मिलेगी और रोज़गार बढ़ेगा। फार्मा सेक्टर को भी राहत मिल सकती है, जिससे अमेरिकी बाज़ार में भारतीय दवा कंपनियों की पकड़ मजबूत होगी।
सबसे अहम बात यह है कि अगर अमेरिका-चीन टकराव गहराता है, तो अमेरिकी कंपनियां सप्लाई चेन को भारत शिफ्ट कर सकती हैं। सैमसंग और ऐपल जैसी दिग्गज कंपनियां पहले ही अपने भारतीय प्लांट्स से अमेरिका को एक्सपोर्ट बढ़ाने पर काम कर रही हैं।
इसलिए सवाल यह नहीं कि सरकार बोल क्यों नहीं रही—सवाल यह है कि क्या हम इस खामोशी की गहराई समझ पा रहे हैं?