राजस्थान से उठी आवाज़: “शांति और भाईचारे की राह पर”, नागपुर हिंसा पर बोले बालमुकुंद आचार्य
Bal Mukund Acharya Statement: राजस्थान के विधायक बालमुकुंद आचार्य ने नागपुर हिंसा पर बयान देते हुए इसे बाहरी ताक़तों की साजिश बताया और कहा कि पाकिस्तान व बांग्लादेश के एजेंट भारत में रहकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत का मुसलमान अमन चाहता है और शांति में विश्वास रखता है। वक्फ बोर्ड और शाहीन बाग जैसे आंदोलनों को भी विदेशी हस्तक्षेप से जोड़ते हुए उन्होंने इसे देश की एकता के खिलाफ बताया। उनका साफ़ कहना है कि वे भाईचारे के पक्षधर हैं और हर प्रकार की हिंसा का विरोध करते हैं। उनका यह मानवीय और भावनात्मक बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।

राजस्थान के अलवर से विधायक बालमुकुंद आचार्य का नागपुर में हुई हालिया हिंसा पर दिया गया बयान अब राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन चुका है। उनके शब्दों में चिंता है, आह्वान है और कहीं गहरे में एक कोशिश भी—देश में बिगड़ती फिज़ा को दोबारा मोहब्बत से भरने की।
20 मार्च को दिए अपने वक्तव्य में आचार्य ने इस बात की ओर इशारा किया कि नागपुर जैसी घटनाएं महज़ आंतरिक असहमति का परिणाम नहीं, बल्कि बाहरी ताक़तों की सोची-समझी चाल हो सकती हैं। उनका कहना था कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से संचालित एजेंट भारत में बैठकर इस तरह की घटनाओं को हवा दे रहे हैं। पर इस बयान के साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आम मुसलमान शांति चाहता है, देश के साथ है और हर उस ताक़त के खिलाफ है जो देश के अमन में दरार डालना चाहती है।
उनके शब्दों में एक अलग ही संजीदगी झलकती है जब वे कहते हैं, “मेरा मकसद भाईचारे को बनाए रखना है।” यह महज़ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक अपील है—उन सब लोगों के लिए जो सियासत से ऊपर उठकर इंसानियत को पहला दर्जा देते हैं।
बालमुकुंद आचार्य ने वक्फ बोर्ड और शाहीन बाग जैसे आंदोलनों को भी विदेशी दखल से जोड़ते हुए कहा कि इन घटनाओं के पीछे कोई न कोई बाहरी एजेंडा ज़रूर काम कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि कई बार इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को यह तक नहीं पता होता कि वे किस बात के लिए विरोध कर रहे हैं। “सोशल मीडिया के ज़रिए जो चीज़ें सामने आती हैं, उनसे लगता है कि कुछ लोग तो सिर्फ़ दिहाड़ी के लिए प्रदर्शन में बुलाए जाते हैं,” उन्होंने कहा।
इन आरोपों के साथ-साथ आचार्य ने एक और महत्वपूर्ण बात कही—“कोई भी सच्चा आंदोलन तब तक प्रभावशाली नहीं होता जब तक उसका मकसद स्पष्ट और आत्मिक न हो। बाहरी इशारों पर उठाए गए झंडे कभी जनसरोकार की आवाज़ नहीं बन सकते।”
हालांकि उनके इस बयान पर राजनीतिक गलियारों और सामाजिक मंचों पर तीखी प्रतिक्रिया देखी जा रही है, लेकिन इन शब्दों के पीछे की भावना को नज़रअंदाज़ करना भी आसान नहीं। एक ओर वे चेताते हैं कि देश के भीतर फूट डालने की कोशिशें तेज़ हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर वे यह भी दोहराते हैं कि देश की आत्मा शांति है, और वह किसी भी हालत में टूटनी नहीं चाहिए।
यह बयान उस समय आया है जब देश कई तरह की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से जूझ रहा है। ऐसे में एक जनप्रतिनिधि की ये भावनाएं शायद हमें उस दिशा में सोचने पर मजबूर कर दें, जहां मतभेदों के बावजूद मेल-मिलाप की गुंजाइश बनी रहे।