जयपुर के अखाड़े में आज भी जिंदा है लाठी की परंपरा, शारीरिक और मानसिक रूप से युवाओं को किया जाता है मजबूत
आधुनिकता के समय मे लोग जिम और योगा सेंटर को ज्यादा अच्छा समझते हैं, और पहले की लाठी को चलाना भूल गए थे। तो वहीं जयपुर का एक अखाड़ा आज भी लाठी की कला को जीवत बनाए हुए है। 250 साल पुरानी इस परंपरा को यहां अब भी सिखाया जाता है।

पहले के समय में लड़ाई हथियारों से ही लाठियों से लड़ी जाती थी, दुनिया की पहली बड़ी जंग भी लाठियों के सहारे लड़ी गई थी और आखिरी लड़ाई भी लाठियों के जरिए ही लड़ी जाएगी। आदिकाल से लोग अपनी रक्षा के लिए लाठी का इस्तेमाल करते थे। पहले इसका बहुत महत्व था, लेकिन आधुनिकता की वजह से अब इसका दौर ही नहीं रहा। लेकिन आज भी ऐसी कई जगह हैं जहां पर लाठी चलाना सिखाया जाता था।
बता दें कि उन अखाड़ों की जगह अब जिम या योगा सेंटर ने ले ली है। ऐसा ही एक अखाड़ा जयपुर में भी है जहां पर आज भी लठैत तैयार किए जा रहे हैं। इन अखाड़ों का मकसद युवाओं को इस आर्ट में माहिर करने के साथ उन्हें शारीरिक व मानसिक तौर पर मजबूत भी किया जाता है। इन अखाड़ों में युवाओं को आर्मी और पुलिस की नौकरी के लिए भी तैयार किया जाता है।
ढ़ाई सौ साल पुरानी परंपरा
बता दें कि इस अखाड़े की परंपरा ढाई सौ साल पुरानी है, इसकी स्थापना साल 1952 में मेरठ के बलवंत सिंह ने की थी। उस समय में पहले के अखाड़े राजाओं और जागीरदारों के यहां चला करते थे। लेकिन बलवंत सिंह ने इसको आम आदमी से जोड़ा और लोगों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया था। इस अखाड़े में बलवंत सिंह की प्रतिमा स्थापित की गई है, यहां में सीखने वाले लोग उनके सामने अपना शीश झुकाते हैं।
लाठी चलाने के लिए नियम
इस अखाड़े में लाठी चलाने के लिए भी कुछ खास नियम हैं, इसके लिए सबसे पहले एक योग्य लाठी का चुनाव करना होता है, जो चलाने वाली की हाइट से ज़्यादा और कान तक की ऊंचाई से कम नहीं होनी चाहिए। लाठी को पकड़ने का भी तरीका काफी अलग होता है। इस प्रशिक्षण के समय इस बात का भी खास ख्याल रखा जाता है कि सामने वाले को चोट नहीं आए।