इस किले में एक जूगनू की रोशनी से जगमगा उठेगा पूरा फोर्ट, आर्किटेक्चर देखकर दिमाग घूम जाएगा
जयपुर के आमेर किले में स्थित शीश महल भारतीय वास्तुकला का एक अनूठा उदाहरण है। 16वीं शताब्दी में निर्मित इस महल की खासियत इसके दीवारों और छतों पर लगे ढाई करोड़ कांच के टुकड़े हैं, जो मोमबत्तियों की रोशनी में जगमगाते हैं।

राजस्थान में कई खूबसूरत महल हैं और हर एक महल की खास विशेषता है। इन महलों के आर्किटेक्चर की तारीफ देश में ही नहीं विदेशों में भी होती है। यहां पर आने वाला हर पर्यटक इन महलों की खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकते हैं। ऐसा ही शीश महल है जिसके आर्किटेक्चर की तारीफ हर कोई करता है। जयपुर से 11 किलोमीटर दूर दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर स्थित आमेर किले की खूबसूरत नक्काशी के साथ शानदार वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है।

इस किले में शीश महल के बनने की कहानी भी काफी अच्छी है। इस खूबसूरत महल का निर्माण 16वीं शताब्दी में महाराजा मान सिंह ने किया था, लेकिन 1727 ई. में इसका निर्माण पूरा हुआ था। इस शीश महल में हर रंग के कांच है और करीब 25 मिलियन यानी ढाई करोड़ कांच के टुकड़ों से इस महल को तैयार किया गया है। इस महल का फर्श भी कांच के टुकड़े से बना हुआ है, इस महल में हर जगह कांच लगा हुआ है। इस वजह से ही इसका नाम शीश महल रखा गया था।

इस महल में बॉलीवुड की फेमस फिल्म “मुगल-ए-आजम” के मशहूर गाने “जब प्यार किया तो डरना क्या” की शूटिंग यही की गई थी। इस गाने को शीश महल में प्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला पर फिल्माया गया था, जिन्होंने उन्होंने “अनारकली” की भूमिका निभाई थी।

इस महल को कांच से बनवाने का भी खास कारण था। दरअसल राजा मान सिहं की पत्नी की ख्वाहिश थी कि उनको सोते समय तारे दिखाई दे। इसलिए राजा ने अपने वास्तुकारों को ऐसा महल बनाने को कहा जिसमें इस समस्या का समाधान हो सके। इसके बाद वास्तुकारों ने शीश महल का निर्माण किया, जिसको पत्थरों और कांच से बनाया गया था। जिससे रात में कांच में एक जुगनू से पूरे कमरे में सितारों जैसा दिखाई देता था।

इस महल में लगे शीशों को लगाने के लिबेल्जियम से मंगाया गया था, और इस महल की सजावट में शीशों के साथ कीमती रत्नों का भी इस्तेमाल किया गया था, जिससे इसकी भव्यता और ज्यादा बढ़ गई है। यह महल 'जय मंदिर' का एक हिस्सा है और आमेर किले का बहुत फेमस और खूबसूरत भाग है।