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राजस्थान के माता के भवन में सरकारी आभूषणों से होता है माता का श्रृंगार, खास है यहां का इतिहास

देश के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान के झालावाड़ जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर असनावर के निकट ग्राम पंचायत लावासल के गांव बाडिया गोरधनपुरा में मुकुन्दरा पर्वतमाला के बीच राता देवी का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक बड़ा केन्द्र है।

राजस्थान के माता के भवन में सरकारी आभूषणों से होता है माता का श्रृंगार, खास है यहां का इतिहास

नवरात्रि का उत्साह पूरे देश में देखने को मिल रहा है। देश के अलग-अलग माता के मंदिरों में खूब पूजा अर्चना जारी है। माता के दरबार में भक्तों का मेला लगा है, तो श्रृंगार की खूब चर्चा है। आज हम आपको राजस्थान के ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां पर माता का श्रृंगार सरकारी आभूषणों से किया जाता है।

इस मंदिर में होता है सरकारी आभूषणों से माता का श्रृंगार

देश के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान के झालावाड़ जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर असनावर के निकट ग्राम पंचायत लावासल के गांव बाडिया गोरधनपुरा में मुकुन्दरा पर्वतमाला के बीच राता देवी का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक बड़ा केन्द्र है। चैत्र व शारदीय नवरात्रि के दिनों में मातारानी के इस धाम की आभा बहुत धार्मिक होती हैं। झालरापाटन तहसील के कोष कार्यालय से माता को सजाने के लिए सोने चांदी के आभूषण आते हैं। ये आभूषण 9 दिनों तक माता के श्रृंगार की शोभा बढ़ाते हैं। नवरात्र के दौरान पुलिस पहरा देती है। ये मंदिर खींची राजाओं ने बनवाया था, ये उनकी कुल देवी के नाम से भी जानी जाती है। चैत्र व शारदीय नवरात्र में खींची राजाओं के वंशज यहां आकर पूजा अर्चना करते है। नवरात्र में यहां खींची परिवार के लोग आते है और पूजा अर्चना करते है। इसके अलावा रातादेवी मंदिर हजारों लोगों की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र है।

सफेद संगमरमर से बना है मंदिर

खास बात ये है कि पूरा मंदिर सफेद संगमरमरस से बना हुआ है। वैसे तो प्रदेश के सभी मंदिरों की रोनक बेहद सुंदर होती है। लेकिन माता ये दरबार बेहद शानदार है। वहीं, रातादेवी के मंदिर पर रात के समय आकर्षक विद्युत सजावट की जाती है। इस मंदिर में हमेशा देशी घी के दीपक जलते है। यहां नवरात्र में मन्दिर में पुलिस का पहरा रहता है, जो बारी बारी से बदलता रहता है। यहीं नही सुबह शाम आरती के समय पुलिस सलामी देती है।

क्या है मंदिर का इतिहास

हर मंदिर की अपनी एक कहानी होती है, रातादेवी मां के मंदिर की भी एक खास कहानी है। मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि मां रातादेवी खींची राजवंश की कुलदेवी थी। राता देवी गागरोन के राजा अचलदास खींची की बहन थी, जो सती होने के दौरान पत्थर के रूप में परिवर्तित हो गई। इनके यहां दो स्वरूपों में पूजा की जाती हैं। इसमें एक बिजासन और दूसरे अन्नपूर्णा के रूप में पूजा होती है। माता की मूर्ति के पीछे अचलदास की छाप है। चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि में 9 दिन तक यहां मेला लगता है। सपूर्ण झालावाड़ जिले, हाड़ौती संभाग एवं मध्य प्रदेश के श्रद्धालु यहां काफी संख्या में आकर श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते है। मंदिर में रोज ही काफी भीड़ होती है, लेकिन नवरात्रि में यहां की रौनक बेहद खास होती है।