Trendingट्रेंडिंग
विज़ुअल स्टोरी

Trending Visual Stories और देखें
विज़ुअल स्टोरी

मुगलों की वजह से कैसे बदला राजस्थानी महिलाओं का पहनावा, जानें क्या थी खास वजह

भारत में घूंघट प्रथा को परंपरा के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसके ऐतिहासिक पहलू अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। यह प्रथा मुगल काल में इस्लामी प्रभाव से शुरू हुई और धीरे-धीरे भारतीय समाज का हिस्सा बन गई। ऋग्वेद काल में वधुओं के खुले सिर रहने की परंपरा का उल्लेख मिलता है, जो इस प्रथा के पुराने भारतीय संस्कृति से अलग होने का संकेत देता है।

मुगलों की वजह से कैसे बदला राजस्थानी महिलाओं का पहनावा, जानें क्या थी खास वजह

हमारे देश के कई प्रदेशों में महिलाओं के घुंघट ओढ़ने की प्रथा है, सदियों से चली आ रही इस प्रथा का पालन हर एक महिला को करना पड़ता है। राजस्थान में भी इसी तरह की घूंघट प्रथा है, जिसमें महिलाओं का चेहरा ढकना पड़ता है। जिससे किसी पराए मर्दों और कोई बुरी नजर ना लगे। इस प्रथा के बारे में यह भी कहा जाता है कि दूसरे बड़ों को इज्जत देने के लिए भी महिलाएं उनके सामने पर्दा करती हैं।

लेकिन क्या आपको पता है कि यह प्रथा मुगल काल के समय से शुरू हुई थी, हमारे कल्चर में इस तरह का कोई चलन नहीं था। इस्लाम धर्म में महिलाओं को पर्दा में रखने और दबाव बनाने की प्रथा है। इसलिए ही इस धर्म की महिलाएं बुर्का पहन कर रहती हैं।

इस्माल धर्म से शुरू हुई पर्दा प्रथा

हमारे हिंदु समाज की महिलाओं के पहनावे के बारे में बात करें तो पर्दा एक पुरानी विरासत की तरह बन गया है, जिसका पालन महिलाओं को करना ही पड़ता है। लेकिन क्या आपको पता है हमारे समाज में महिलाओं के लिए शुरू हुई ये प्रथा इस्लाम से आई है।

बता दें कि पर्दा एक इस्लामी शब्द है, जो कि फारसी भाषा से आया है, और इसका हिंदी में अर्थ 'ढकना' होता है। भारत में आई इस पर्दा प्रथा की जड़े फारसी कल्चर से जुड़ी हुई हैं। पर्दे के तौर पर मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनती हैं यह बुर्का दो तरह का होता है, एक में पूरा शरीर ढका होता हैं और दूसरे में सिर्फ बाल और चेहरा ढका होता है।

वेदों में भी प्रथा का भी वर्णन

प्राचीन भारत और दुनियाभर में कई जगहों पर महिलाओं के लिए आवाज उठाई गई। भारत में इस्लाम आने के बाद से घुंघट प्रथा आई थी, इसकी शुरूआत का विस्तार 19वीं शताब्दी से मिलता है, लेकिन इसकी सही शुरुआत 12वीं सदी से माना जाता है।

प्राचीन ऋग्वेद काल में कहा गया है कि शादी के समय कन्या की मुंह दिखाई के लिए कहा जाता था, इसके लिए एक मंत्र भी है जिसमें कहा गया है कि 'ये कन्या मंगलमय हो, एकत्र हो, इसे देखो और आशीष देकर ही अपने घर जाओ।' इस तरह से कह सकते हैं कि उस समय में वधुएं पर्दा नहीं करती थीं, बल्कि सभी के सामने खुले सिर रहती थीं।