राजस्थान में किसानों का बड़ा फैसला, 45,537 गांवों के बंद रहने का ऐलान, जानें क्या है आंदोलन का कारण
राजस्थान में किसानों ने अपनी मांगों को लेकर एक अनूठा आंदोलन छेड़ दिया है। इस ‘गांव बंद’ नामक आंदोलन के अंतर्गत 45,537 गांवों के किसानों ने फैसला लिया है कि वे अपनी फसल और उत्पाद शहरों में नहीं भेजेंगे।

राजस्थान के कई गांवों में एक अनोखा आंदोलन चलाया जा रहा है, इसके अंतर्गत 45,537 गांव बंद रहेंगे। इस आंदोलन का नाम 'गांव बंद' रखा गया है। इन गांवों में रहने वाले ग्रामीणों ने फैसला लिया है कि आज के दिन वह फल-सब्जी व अन्य किसी भी सामान को गांव से बाहर शहर नहीं भेजेंगे। किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं।
आंदोलन के अंतर्गत नहीं होगा मोटर परिवहन का उपयोग
इस आंदोलन पर जाट ने कहा कि इस गांव बंद के दौरान स्थानीय लोग गांव में ही रहेंगे और अपने-अपने सामान को गांव में ही बेचेंगे। उन्होंने आगे यह भी कहा कि इसके अलावा मोटर परिवहन का उपयोग भी नहीं किया जाएगा। इस गांव बंद के दौरान यदि कोई किसी गांव में आकर फसल या कोई भी उत्पाद खरीदना चाहता है तो खरीद सकता है।
इसके आगे जाट ने कहा कि इस आंदोलन का फायदा यह होगा कि इससे खाद्य पदार्थों में मिलावट होने से बचाव होगा। इस बंद का उद्देश्य किसानों को मोल-भाव करने की शक्ति देना और अपने उत्पाद का मूल्य खुद से निर्धारित करना भी है। इस गांव बंद को सिंचाई योजनाओं, फसल नुकसान का मुआवजा देना और न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने जैसे प्रमुख मुद्दे केंद्र के सामने रखना है।
आंदोलन का असर पूरे प्रदेश में होगा
इस आंदोलन पर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि इसका व्यापक असर पूरे प्रदेश पर होगा। इस राज्य के करीब 45 हजार 537 गांव बंद रहने वाले है और इसके स्वैच्छिक होने के कारण किसी भी तरह का टकराव नहीं होगा। ऐसे में गांव का व्यक्ति गांव में रहते हुए अपनी कमाई के लिए लड़ाई कर सकता है। अभी सरकार को चेतावनी देने के लिए एक दिन का गांव बंद किया जा रहा है।
प्रदेश के हजारों ग्रामीणों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी को लेकर आंदोलन का भी समर्थन किया था। इस पर जाट ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कह रहे हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को मिलने की गारंटी है, लेकिन अभी तक इस गारंटी को विधानसभा तक नहीं पहुंचाया गया है और यहा कानून अभी केवल अलमारी तक ही सीमित है। इसलिए अब सरकार को यह कानून विधानसभा तक ले जाना चाहिए।