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Rajasthan Famous Khatu Shayam: कौन है बाबा खाटू श्यामजी? बेहद रोचक है उनकी कहानी, जानिए विस्तार में....

Rajasthan Famous Khatu Shayam: महाभारत के भीषण युद्ध के दौरान की कथा में खाटू श्याम से बर्बरीक बनने का जिक्र मिलता है। खाटू श्याम मंदिर भक्तों के लिए श्रृद्धा का केंद्र है। मंदिर की एक बहुत ही खास और अनोखी बात प्रचलित है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है इसे बाबा श्याम का हर बार एक नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को उनके आकार में भी बदलाव नजर आता है।

Rajasthan Famous Khatu Shayam: कौन है बाबा खाटू श्यामजी? बेहद रोचक है उनकी कहानी, जानिए विस्तार में....

Rajasthan Famous Khatu Shayam: राजस्थान के सीकर में स्थित खाटू श्याम मंदिर की बड़ी मात्रा है। यहां लाखों की तादाद में भक्त आते हैं, जिनका मानना है कि बाबा कलयुग में श्रीकृष्ण का अवतार हैं। यहां की मान्यता बीते दशकों में काफी प्रचलित भी हुई है। लेकिन क्या आप इस मंदिर की मान्यता और इतिहास के बारे में जानते हैं....

कौन हैं बाबा खाटू श्याम

खाटू श्याम असल में भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे बर्बरीक हैं। इन्हीं की खाटू श्याम के रूप में पूजा की जाती है। बर्बरीक में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे और इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे। इसी कारण इन्हें तीन बाण धारी भी कहा जाता है।

मंदिर को लेकर है बेहद खास मान्यता

खाटू श्याम मंदिर भक्तों के लिए श्रृद्धा का केंद्र है। मंदिर की एक बहुत ही खास और अनोखी बात प्रचलित है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है इसे बाबा श्याम का हर बार एक नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को उनके आकार में भी बदलाव नजर आता है।

खाटू श्याम कैसे बन गए बर्बरीक 

महाभारत के भीषण युद्ध के दौरान की कथा में खाटू श्याम से बर्बरीक बनने का जिक्र मिलता है। युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी माता अहिलावती के समक्ष इस युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की। मां ने इसकी अनुमति दी, तो उन्होंने माता से पूछा, ‘मैं युद्ध में किसका साथ दूं?’ जवाब के लिए माता अहिलावती ने विचार किया कि कौरवों के साथ तो विशाल सेना, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य, अंगराज कर्ण जैसे महारथी हैं, इनके सामने पांडव अवश्य ही हार जाएंगे। इसलिए उन्होंने बर्बरीक से कहा कि ‘जो हार रहा हो, तुम उसी का सहारा बनो।’ बर्बरीक ने माता को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेंगे और वह युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े। 

जब श्रीकृष्ण ने रची लीला

युद्ध में कौरवों की विशाल सेना के आगे पांडवों की हार होगी, ये समझा जा रहा है। लेकिन श्रीकृष्ण जानते थे कि धर्म की जीत होगी, ऐसे में जब बर्बरीक के शामिल होने की बात हुई। तो श्रीकृष्ण ने सोचा कि कौरवों को हारता देखकर बर्बरीक कौरवों का साथ देने लगे तो पांडवों का हारना निश्चित है। तब श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक सोच में पड़ गया कि कोई ब्राह्मण मेरा शीश क्यों मांगेगा? यह सोच उन्होंने ब्राह्मण से उनके असली रूप के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप में दर्शन दिए। इसपर उन्होंने अपनी तलवार निकालकर श्रीकृष्ण के चरणों में अपना सिर अर्पण कर दिया। जिसे श्रीकृष्ण ने सींचकर अमर कर दिया। तब बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से पूरा युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की, तभी श्रीकृष्ण ने उनके शीश को युद्ध भूमि के पास की ऊंची पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया, जहां से बर्बरीक पूरा युद्ध देख सकते थे।

हारने वाले का सहारा खाटू श्याम

युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान श्रीकृष्ण उन्हें वरदान दिया कि ‘‘बर्बरीक धरती पर तुम से बड़ा दानी न तो कोई हुआ है और न ही होगा। मां को दिए वचन के अनुसार, तुम हारने वाले का सहारा बनोगे। लोग तुम्हारे दरबार में आकर जो भी मांगें उन्हें मिलेगा।’’ इस तरह से खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया।