गैर सरकारी विधेयकों पर राजस्थान विधानसभा में सन्नाटा क्यों? विधायक बोले– हमें लॉ इन्टर्न चाहिए, कानून बनाने में हो मदद
राजस्थान विधानसभा में गैर सरकारी विधेयकों पर सन्नाटा, विधायकों को नहीं मिल रहा सहयोग। क्या कानून बनाने की ताकत से वंचित हो रहे हैं जनप्रतिनिधि?

राजस्थान विधानसभा में लोकतांत्रिक बहस और विधायी सक्रियता के सबसे जरूरी पहलुओं में से एक गैर सरकारी विधेयकों को लेकर वर्षों से चुप्पी पसरी हुई है। जबकि लोकसभा में पिछले साल 65 गैर सरकारी विधेयक पेश किए गए, वहीं राजस्थान विधानसभा की स्थिति बेहद निराशाजनक रही है। बीते 11 वर्षों में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के कुछ विधायकों ने इन विधेयकों को सदन में लाने का प्रयास किया, लेकिन वे न बहस तक पहुंच पाए और न ही सदन में पेश हो सके।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सी.पी. जोशी का मानना है कि यदि विधायकों को विधानसभा सचिवालय से सहयोग और प्रशिक्षण मिले, तो वे अधिक प्रभावी ढंग से विधेयक तैयार कर सकेंगे। उन्होंने सुझाव दिया कि विधायकों को लॉ इन्टर्न मुहैया कराए जाएं और उन्हें विधि सचिव से विधेयक बनाने की प्रक्रिया की जानकारी दी जाए, ताकि सदन की बहसें केवल राजनीतिक भाषणों तक सीमित न रहें, बल्कि ठोस वैधानिक सुझावों में बदल सकें।
भाजपा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने बताया कि 14वीं विधानसभा में उन्होंने एक गैर सरकारी विधेयक प्रस्तुत करने की योजना बनाई थी, लेकिन सदन स्थगित हो गया। उनका कहना है कि हर दूसरे शुक्रवार को गैर सरकारी विधेयकों के लिए समय तय होता है, पर साल में विधानसभा 60 दिन भी नहीं चलती। तिवाड़ी कहते हैं कि कार्य सलाहकार समिति अन्य काम तय कर देती है, जिससे गैर सरकारी विधेयकों के लिए स्थान ही नहीं बचता।
पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ भी इस प्रक्रिया से निराश हैं। उन्होंने राजस्थानी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिलाने और मंदिर माफी जमीनों के मुद्दे पर विधेयक लाने का प्रयास किया था, लेकिन उन्हें न तो विधि विभाग से सहयोग मिला और न ही सचिवालय से। उन्होंने भी सदन की अवधि बढ़ाने और विधायकों को विधायी प्रशिक्षण देने की मांग की।
कांग्रेस विधायक रोहित बोहरा ने चार साल पहले एक विधेयक लाने का प्रयास किया था, पर सचिवालय की प्रक्रियाओं ने उन्हें बार-बार चक्कर कटवाए। उनका स्पष्ट सुझाव है कि विधायकों को लॉ इन्टर्न दिए जाएं, जो तकनीकी सहायता दे सकें।
इस सबके बीच बड़ा सवाल है क्या विधानसभा सिर्फ नीतिगत चर्चाओं का मंच रह गया है या यह आमजन के हित में सार्थक कानून गढ़ने वाला एक जिम्मेदार संस्थान भी बनेगा?