भजनलाल शर्मा और वसुंधरा राजे सिंधिया, मुलाकात... सियासत में उबाल... कितना बदलेगा प्रदेश का हाल ?
वो दौर कुछ और था ये दौर कुछ है.... राजस्थान की सियासत के ऊपर ये लाइनें ठीक बैठती हैं। यहां की राजनीति में कब कोई मामूली इंसान फलक पर बैठ जाए और कब किसी सियासतदान का कद बदल जाए ये कोई नहीं कह सकता।

भजनलाल शर्मा, नाम तो आपने सुना ही होगा। लेकिन जिस वक्त उन्हें प्रदेश की सत्ता की कमान बीजेपी आलाकमान ने सौंपी, उस वक्त हर कोई हैरान रह गया। हैरान होने की वजह भी थी क्योंकि एक ऐसा नाम जो न किसी के ख्याल में आया था न कयासों में था और न किसी ने इस नाम को सुना होगा। जिस वक्त ये नाम सामने आया तमाम बड़े नाम जिनको ये अंदाजा था कि इस बार तो कुर्सी के दवादार वो पक्के हैं, उन चेहरों पर केवल और केवल हैरानी थी।
कैसे आम से खास बने भजनलाल ?
भजनलाल शर्मा का नाम जिस वक्त भीतरी गलियारों में आना शुरू हुआ कोई भी मानने को तैयार नहीं था। लेकिन उनका तर्क साफ था कि उत्तर भारत में बीजेपी का कोई भी सीएम ब्राह्मण नहीं है। तर्क ऐसा जिसे कोई भी मानने को भी तैयार नहीं था। दिन ढला और सुबह होते-होते सोशल मीडिया पर भजनलाल शर्मा का नाम छा गया।
वसुंधरा या कोई और क्यों नहीं ?
राजस्थान के सीएम पद के लिए वसुंधरा राजे का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में था। वसुंधरा नहीं तो गजेंद्र सिंह शेखावत, दीया कुमारी, अर्जुन मेघवाल या फिर ओम बिड़ला । अगर इन नामों में से कोई भी होता तो शायद इतनी हैरानी नहीं होती, लेकिन भजनलाल शर्मा के नाम को लेकर हर कोई हैरान था। ताउम्र जिसका कई बड़े चेहरों ने इंतजार किया वो पल और दूर हो गया।
भजनलाल और सांगानेर की सीट
ये तो थी दूसरी बात, लेकिन भजनलाल ने इस चुनाव में सबको तब ज्यादा चौंका दिया था जब उनको तमाम बवाल के बावजूद सांगानेर से टिकट दिया गया था। इस सीट से तत्कालीन विधायक अशोक लाहोटी की जगह उनको तरजीह दी गई थी। उस वक्त लोगों को भजन लाल कागजी नेता और उनके ख्याल आरजू लगते थे, लेकिन किसे पता था की जिस नाम को कोई कुबूल नहीं कर पा रहा वहीं मंजिल के शिखर पर बैठेगा।
जिसने मंत्री बनने की नहीं सोंची वो कैसे बना मुख्यमंत्री ?
साल 2003 में जब भजनलाल ने भरतपुर की नईबई सीट से राजस्थान सामाजिक न्याय मंच की टिकट पर चुनाव लड़ा तो वह चुनाव हार गए। उनको केवल 5,969 वोट ही मिले थे। उनके एक करीबी नेता ने बताया कि भजनलाल का ख्वाब था विधायक बनना और सरकार में अच्छी पैठ बनाना। उन्होंने बताया कि भजनलाल ने कभी मंत्री बनने तक की नहीं सोंची।
वसुंधरा की निराशा के मायने
3 दिसंबर 2023 को राजस्थान विधानसभा के परिणाम आए तो ऐसा माहौल लग रहा था कि कोई बड़ा चेहरा सीएम पद की शपथ लेगा जो दिल्ली से होगा या विधायकों का चहेता होगा। लेकिन 12 दिसंबर तक ये कयास धरे रह गए। इन बड़े नामों के दिलों में सुकून नहीं था और अब माना जा रहा था कि वसुंधरा राजे को इस बार निराश होना पड़ेगा।
भजनलाल को तरजीह क्यों ?
बीजेपी से जुड़े तमाम जानकारों का मानना था कि पार्टी लोकसभा चुनावों में बड़ा संदेश देना चाहती है। जानकारों का मानना था कि लोगों में सत्ता का सुरूर ऐसा था कि संगठन के कई लोग अपनी बात कहने तक के लिए तरस जाते थे। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना था कि एक समय ऐसा था जब राजनाथ सिंह जब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और उनका जयपुर दौरा था, तो शीर्ष नेता उनकी अगवाई तक के लिए मौजूद नहीं रहीं। कुछ जानकारों का कहना था कि संघ के और पार्टी के कुछ लोग उनसे मिलने की कोशिशें करते रहे लेकिन मिल न सके।
2008 की हार का जिम्मेदार आखिर कौन ?
2008 में जब प्रदेश में बीजेपी की हार हुई तो प्रदेश महामंत्री संगठन प्रकाशचंद्र ने तुरंत और प्रदेश अध्यक्ष ओम माथुर ने कुछ दिन बाद इस्तीफ़ा दे दिया था; लेकिन वसुंधरा राजे नेता प्रतिपक्ष के पद पर लंबे समय तक बनी रहीं।
इसके अलावा 2017 में गजेंद्र सिंह शेखावत को आलाकमान प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहता था, तो ऐसी भी खबरें सामने आई कि वसुंधरा राजे केंद्र के नेताओं पर ही भारी पड़ गईं। कहीं न कहीं अंतरखाने से ये आवाज आने लगी कि अगर बीजेपी सत्ता में लौटती है तो सीएम ऐसा हो जो आम कार्यकर्ताओं से भी पूरी सहजता के साथ मिल सके और शीर्ष नेताओं का घमंड भी दूर हो सके क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है तो कहीं न कहीं प्रदेश में बीजेपी के प्रदर्शन पर भी इसका असर देखने को साफ मिलेगा।
फिर एक बार दोनों साथ-साथ
लेकिन हाल ही में बीजेपी मुख्यालय में हुई बड़ी बैठक में सीएम भजनलाल शर्मा और वसुंधरा राजे सिंधिया एक साथ दिखे। साथ में हंसते- मुस्कुराते और बातें करते हुए। गौर करने की बात यह भी है कि लंबे समय बाद सिंधिया पार्टी की किसी बैठक में शामिल हुई थीं। ऐसे में दोनों का साथ आना कहीं न कहीं चर्चा का विषय जरूर बन गया है। वहीं दूसरी ओर मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर भी चर्चा तेज है। ऐसे में अब एक बात तो तय है कि कहीं न कहीं अब प्रदेश में बड़े बदलाव की तैयारी है।