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'किरोड़ीलाल मीणा वैरागी, अब विजय बैंसला भी हुए बागी!'...राजे-गहलोत को मिले सबक में छिपा है जातीय समीकरण का बड़ा मैसेज!

जहां एक ओर बीजेपी नेता डॉ. किरोड़ीलाल मीणा वैरागी होने की बात कह रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर विजय बैंसला के भी सुर बागी हो चुके हैं. अगर स्थितियां ऐसी ही बनी रहीं तो आने वाले समय में बीजेपी को इसका निगेटिव असर भी देखने को मिल सकता है.

'किरोड़ीलाल मीणा वैरागी, अब विजय बैंसला भी हुए बागी!'...राजे-गहलोत को मिले सबक में छिपा है जातीय समीकरण का बड़ा मैसेज!

बीजेपी नेता डॉ. किरोड़ीलाल मीणा वैरागी होने की बात कर रहे हैं तो विजय बैंसला बागी सुर अपना चुके हैं. मंत्रिमंडल में समाज के प्रतिनिधित्व पर बात करते हुए वह कह रहे हैं, "मजा नहीं आया." तभी तो वह कह रहे हैं, "हमें एक राज्य मंत्री मिला. इसके लिए बहुत धन्यवाद, लेकिन हमारा प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाना चाहिए. समाज के लोग कह रहे हैं कि प्रतिनिधित्व अच्छा चाहिए. 'बोल गुर्जर मन की बात' कार्यक्रम का फीडबैक जो उन्होंने बताया, वह खास तौर पर चेतावनी की तरह ही देखा जा रहा है. उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि सरकार गुर्जर समाज को हल्के में ना लें. हम पटरियों पर बैठना भूले नहीं हैं. बैंसला जिस बात को कह रहे हैं, वह कई बार सही भी साबित हुई है. गुर्जर समाज को हल्के में लेने का खामियाजा तो राजस्थान के कई दिग्गज भुगत चुके हैं.

"सण की संटी सण म आगई, ब्याण वसुंधरा गुर्जरां न भा गई"

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का स्वागत गुर्जर समाज में ऐसे ही पारंपरिक गीतों के साथ ही किया जाता था. जाहिर तौर पर उनके और गुर्जर समाज के रिश्तों की मिठास का अंदाजा भी लगाया जा सकता था. वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार (2013-18) में गुर्जर नेता हेम सिंह भड़ाना कैबिनेट मंत्री और कालूलाल गुर्जर सरकार के मुख्य सचेतक भी थे. उनके राजनीति के पदार्पण में भी इस समाज की बड़ी भूमिका रही तो वहीं, उन्हें सत्ता से बेदखल भी होना पड़ा.

वसुंधरा राजे ने 2003 में पूरे राज्य में परिवर्तन यात्रा निकालकर प्रदेश की सियासत में एंट्री ली थी. प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने 26 अप्रैल 2003 को उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले में चारभुजा मंदिर से परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की थी. प्रदेश के दौरे पर निकलीं राजे को राजपूत समुदाय ने बेटी, जाट समुदाय ने बहू और गुर्जर समुदाय ने समधन मानते हुए वसुंधरा राजे का चुनरी ओढ़ाकर उनका प्रदेश में भव्य स्वागत किया था. यात्रा में गुर्जर सहित अन्य समाजों के साथ का ही नतीजा था कि प्रदेश में 13 हजार किलोमीटर का सफर करने वाली नेता की झोली में 120 सीटें आ गईं. नतीजतन राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं.

जिन गुर्जरों ने राजे की ताज सजाने में भूमिका निभाई, उन्होंने ही साल 2008 के चुनाव में जमकर विरोध भी किया. गुर्जर आरक्षण आंदोलन के बाद वसुंधरा राजे सरकार का एक्शन भारी पड़ गया. पुलिस फायरिंग में 73 लोगों की जान चलीं गईं. बीजेपी की सत्ता से विदाई में गुर्जर आरक्षण आंदोलन को एक अहम कारण भी माना गया. इसके बाद राजस्थान में साल 2018 में भी गौरव यात्रा का विरोध हुआ.

जिसे कांग्रेस ने जिताया, उसी फैक्टर ने सत्ता छीन ली!

साल 2018 में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की अगुवाई में पूर्वी राजस्थान के 8 जिलों (अलवर, भरतपुर, बूंदी, दौसा, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर और टोंक), साल 2018 में कांग्रेस ने पूर्वी राजस्थान में 42 में से 29 सीट जीती थीं जबकि भाजपा को छह सीट मिली थीं. लेकिन मुख्यमंत्री ना बनाए जाने और पायलट के 'अपमान' से नाराज गुर्जर मतदाताओं की बेरूखी गहलोत को ऐसी भारी प़ड़ी कि 2023 के चुनाव में कांग्रेस की सीटें 29 से घटकर 19 रह गईं, जबकि भाजपा को 14 सीट का फायदा हुआ और आंकड़ा 20 तक पहुंच गया.