जानिए जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हिंदू-मुस्लिम पर जावेद अख्तर ने ऐसा क्या कहा कि महफिल ठहाकों से गूंज गई!
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जावेद अख्तर ने ज्ञान सीपियां सेशन में मातृभाषा पर जोर दिया। हालांकि, उन्होंने युवा पीढ़ी को अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी से वास्ता रखने की सलाह भी दी। इसी दौरान जावेद अख्तर ने कवि और कविता से जुड़ा हिंदू-मुस्लिम पर व्यंगात्मक जवाब दिया।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की गुरुवार को बेहद शानदार तरीके से शुरुआत हुई। 5 दिन तक चलने वाले इस इवेंट को होटल क्लार्क्स आमेर में आयोजित किया गया है, जोकि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) का 18वां एडिशन है। ये 3 फरवरी तक चलेगा। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन जावेद अख्तर ने उनकी नई किताब "सीपियां" का विमोचन सुधामूर्ति ने किया। साथ ही उन्होंने अपने अनुभवों को इस अंदाज में पेश किया कि पूरी महफिल ही उनके रंग में रंग गई।
हिंदू-मुस्लिम पर ये क्या कह गए जावेद साहब!
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जावेद अख्तर ने ज्ञान सीपियां सेशन में मातृभाषा पर जोर दिया। हालांकि, उन्होंने युवा पीढ़ी को अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी से वास्ता रखने की सलाह भी दी। इसी दौरान जावेद अख्तर ने कवि और कविता से जुड़ा हिंदू-मुस्लिम पर व्यंगात्मक जवाब दिया। दरअसल, जावेद अख्तर ने राम रहीम दास के एक बहुत पुराने दोहे का जिक्र कर कहा कि साढ़े पांच सौ साल पहले का दोहा है, लेकिन ये हम सबकी लाइफ का रहनुमा है।
"रहिमन मुश्किल आ पड़ी, टेढ़े दोऊ काम... सीधे से जग न मिले, उलटे मिले न राम" इस दौरान साथ बैठे अभिनेता अतुल तिवारी, जोकि जावेद अख्तर के पुराने मित्र भी हैं, उन्होंने हौसला अफ़ज़ाई करते हुए बीच में बोलते हुए कहा कि राम की बात एक मुस्लिम कवि कह रहा है। ये बड़ी बात है... इस पर जावेद अख्तर ने भी हंसते हुए जवाब दिया कि भाई कवि... कवि होता है... बेचारे जो शायरी नहीं कर पाते वो लोग होते हैं हिंदू-मुसलमान। जावेद के इस अंदाज पर पूरी महफिल हंसी-ठहाकों से गूंज उठी। उन्होंने कहा कि कविता तो प्यार की भाषा है।
'अंग्रेजी से रखें वास्ता, लेकिन मातृभाषा से भी जुड़े रहें'
इन दिनों महफिलों में हिंदी और मातृभाषा को लेकर दिग्गज तमाम बातें कर युवाओं को रास्ता दिखाते हैं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जावेद अख्तर ने अपनी नई किताब "सीपियां" का विमोचन कर कहा कि आज की पीढ़ी को अंग्रेजी से वास्ता रखना चाहिए पर अपनी मातृभाषा से भी जुड़े रहना चाहिए। अगर आप अपनी मातृभाषा से नहीं जुड़े हैं तो यह मान लीजिए कि आपने पेड़ को तना और साखें तो दे दी, मगर जड़ों से उसको महरूम रख दिया है। जावेद साहर की ये किताब दोहों पर आधारित है।