काल्विन हॉल से नेहरू भवन तक, 1930 में तिरंगा फहराने वाला राजस्थान का पहला शहर, पढ़ें दिलचस्प कहानी
आजादी से पहले 1930 में ब्यावर के नगर परिषद भवन पर तिरंगा फहराया गया था, जिसने पूरे देश में स्वतंत्रता की अलख जगाने का काम किया।

राजस्थान का ब्यावर शहर न केवल अपने औद्योगिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि यह स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपनी खास जगह रखता है। आजादी से पहले 1930 में ब्यावर के नगर परिषद भवन पर तिरंगा फहराया गया था, जिसने पूरे देश में स्वतंत्रता की अलख जगाने का काम किया। यह घटना स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में ब्यावर की अहम भूमिका को दर्शाती है।
1930 में फहराया गया था तिरंगा
ब्यावर नगर परिषद, जिसे प्रदेश की पहली म्यूनिसिपल का गौरव प्राप्त है, 26 जनवरी 1930 को तिरंगे फहराने की ऐतिहासिक घटना का साक्षी बनी। यह कदम स्वतंत्रता सेनानियों और स्थानीय नागरिकों के साहस और देशभक्ति का प्रतीक था। इस दौरान भारतीय और अंग्रेजों के बीच साझा शासन का प्रस्ताव पारित किया गया था, लेकिन ब्यावर ने अपनी पहचान स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले अग्रणी शहर के रूप में बनाई।
स्वतंत्रता सेनानियों की तपोभूमि
ब्यावर स्वतंत्रता सेनानियों का एक प्रमुख केंद्र था। श्यामगढ़ का किला स्वतंत्रता सेनानियों के प्रशिक्षण का स्थान था। तात्या टोपे, रास बिहारी बोस, चंद्रशेखर आजाद, केसरीसिंह बारहठ और सरदार भगत सिंह जैसे महान सेनानी यहां आते-जाते रहते थे। यह शहर न केवल उनके विचारों का केंद्र बना, बल्कि उनके संघर्षों का भी साक्षी रहा।
काल्विन हॉल से नेहरू भवन तक का सफर
ब्यावर का टाउन हॉल, जिसे 1910 में काल्विन कमिश्नर द्वारा उद्घाटित किया गया था, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया। स्कॉटलैंड के एडिनबरा के टाउन हॉल के मॉडल पर बने इस भवन का नाम आजादी के बाद नेहरू भवन रखा गया। यहां से होने वाली हलचल अंग्रेजी शासन तक सीधे पहुंचती थी, जो इसे रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती थी।
औद्योगिक और व्यापारिक केंद्र के रूप में ब्यावर
आजादी के आंदोलन के दौरान ब्यावर औद्योगिक और व्यापारिक दृष्टि से विकसित शहर था। 1866 में नगर परिषद की स्थापना और 1880 में रेलवे के आगमन ने इसे आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया। कपड़ा मिलों के संचालन और व्यापारिक गतिविधियों ने इसे राजस्थान के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में शामिल किया।
परकोटा वाला शहर: ब्यावर का ऐतिहासिक रूप
पुराने समय में ब्यावर को 'परकोटा वाला शहर' भी कहा जाता था। अजमेरी गेट, मेवाड़ी गेट, चांग गेट और सूरजपोल गेट से घिरे इस शहर का मुख्य बाजार आज भी इसकी विरासत का प्रतीक है।
सूचना के अधिकार का आगाज
ब्यावर न केवल आजादी के आंदोलन में अग्रणी रहा, बल्कि आजादी के बाद भी इसे कई ऐतिहासिक आंदोलनों का गढ़ माना गया। सूचना के अधिकार (RTI) का आगाज ब्यावर के चांग गेट से हुआ, जिसने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई।