ब्लैक मंडे 2.0 की आहट! ट्रंप की टैरिफ तलवार से कांप उठे बाजार, फिर दोहराएगा इतिहास खुद को?
Trump Tariff Impact: क्या 1987 का ब्लैक मंडे दोबारा लौट आया है? ट्रंप के टैरिफ एलान से वैश्विक शेयर बाजारों में हाहाकार मच गया है। जानिए पूरी कहानी इस आर्थिक झटके की।

क्या 1987 का डरावना इतिहास फिर लौट आया है? ये सवाल इस वक्त हर निवेशक, हर ट्रेडर और हर अर्थशास्त्री के मन में गूंज रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब भारत, चीन और कई अन्य देशों पर भारी टैरिफ लगाने का एलान किया, तो शायद उन्हें भी अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि इसका असर वैश्विक बाजारों पर बिजली गिरने जैसा होगा।
हफ्ते की शुरुआत के साथ ही एशियाई बाजारों ने ऐसी करवट ली कि निवेशकों की रूह कांप गई। जापान का निक्केई, हांगकांग का हैंगसेंग और भारत का सेंसेक्स—all red! शेयरों की बिकवाली इतनी तेज़ रही कि सोशल मीडिया पर #BlackMonday और #OrangeMonday ट्रेंड करने लगे।
इस सबने 1987 के उस बदनाम सोमवार की याद दिला दी—19 अक्टूबर, जिसे ब्लैक मंडे कहा जाता है। उस दिन अमेरिका का डॉव जोन्स एक झटके में 22.6% लुढ़क गया था। S&P 500 ने भी 30% से अधिक की गिरावट दर्ज की थी। उस दौर में भी बाजार बुलिश मोड में थे, निवेशकों का भरोसा चरम पर था, लेकिन हकीकत धीरे-धीरे सतह पर आने लगी।
उस समय की तरह ही आज भी कुछ पैटर्न डराने लगे हैं। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि मौजूदा टैरिफ वॉर, ओवरवैल्यूड स्टॉक्स और अल्गोरिदमिक ट्रेडिंग ने मिलकर बाजार को अस्थिर बना दिया है। अमेरिका से लेकर एशिया तक हर प्रमुख इंडेक्स पसीने-पसीने है।
कंप्यूटराइज्ड ट्रेडिंग आज भी बाजार की दिशा तय करने में बड़ी भूमिका निभा रही है। लेकिन जब बेचने के आदेश मशीनों से निकलते हैं, तो भावनाएं नहीं देखी जातीं—सिर्फ गिरावट दर्ज होती है। यही हो रहा है अब, जब निवेशक अपने पोर्टफोलियो को बचाने के लिए दौड़ रहे हैं, और शेयर खुद को बचाने की कोशिश में फिसलते जा रहे हैं।
बाजारों की ये सिहरन सिर्फ आर्थिक नहीं, भावनात्मक भी है। करोड़ों लोगों की उम्मीदें, बचत और भविष्य इससे जुड़ा है। ऐसे में ट्रंप के टैरिफ को सिर्फ एक पॉलिसी कदम नहीं, बल्कि एक वैश्विक आर्थिक जुआ कहा जा सकता है।