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गुटबाजी या रणनीति? राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले Rajasthan बीजेपी में हलचल, सत्ता और संगठन के बीच सियासी खटपट

Rajasthan Politics: बैठक का उद्देश्य जिलाध्यक्षों और मंडल अध्यक्षों के चुनावों को समय पर पूरा करना और पार्टी के भीतर के मतभेदों को सुलझाना था। फरवरी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है।

गुटबाजी या रणनीति? राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले Rajasthan बीजेपी में हलचल, सत्ता और संगठन के बीच सियासी खटपट

Rajasthan Politics: राजस्थान भाजपा इन दिनों संगठनात्मक चुनावों को लेकर जूझ रही है। संगठन में जिलाध्यक्षों और मंडल अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया न केवल लंबित है, बल्कि इसके कारण पार्टी के भीतर मतभेद भी उभर रहे हैं। राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने जयपुर में इस मुद्दे पर समीक्षा बैठक आयोजित की, जिसमें मुख्यमंत्री भजनलाल, प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे समेत अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद रहे।

बैठक का उद्देश्य जिलाध्यक्षों और मंडल अध्यक्षों के चुनावों को समय पर पूरा करना और पार्टी के भीतर के मतभेदों को सुलझाना था। फरवरी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है, और इससे पहले ये सुनिश्चित करना पार्टी की प्राथमिकता है कि संगठनात्मक स्तर पर एकता बनी रहे।

अंदरूनी खटपट या राजनीतिक रणनीति?

पार्टी के अंदर की खींचतान और देरी से उठ रहे सवाल ये संकेत देते हैं कि सबकुछ ठीक नहीं है। संगठनात्मक चुनावों में देरी ने पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी और मतभेदों को और उजागर किया है। हाल ही में राजस्थान पुलिस सब इंस्पेक्टर परीक्षा को लेकर सरकार और मंत्रियों के विरोधाभासी बयानों ने इन अटकलों को और तेज कर दिया।

भाजपा सरकार के एक मंत्री का बयान हाईकोर्ट में पेश सरकार के रुख से अलग था, जिससे विपक्ष को मुद्दा बनाने का मौका मिला। कांग्रेस ने इसे भाजपा की आंतरिक गड़बड़ियों को उजागर करने का माध्यम बना लिया।

डैमेज कंट्रोल की कोशिश

समीक्षा बैठक में मौजूद नेताओं ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए गहन चर्चा की। हालांकि, बाहर आकर किसी नेता ने कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन उनके चेहरों पर चिंता स्पष्ट झलक रही थी।

भाजपा पर कांग्रेस की नजरें

कांग्रेस इन घटनाक्रमों पर बारीकी से नजर रखे हुए है। वो भाजपा के भीतर की खटपट को भुनाने की कोशिश में है ताकि संगठन और सरकार दोनों को घेरा जा सके।

राजनीतिक महत्व और चुनौतियां

संगठनात्मक चुनाव न केवल भाजपा के लिए सत्ता और संगठन के बीच संतुलन बनाए रखने का मौका हैं, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी के आंतरिक ढांचे को मजबूत करने का भी साधन हैं।