नसरुद्दीन की वक्फ हिमायत पर भड़के अंजुमन, बोले- दलाल हैं सरकार के
अजमेर दरगाह में वक्फ बिल को लेकर दीवान और अंजुमन आमने-सामने, एक पक्ष में समर्थन तो दूसरे में विरोध। जानिए क्या बोले नसरुद्दीन और सरवर चिश्ती।

देशभर में वक्फ संशोधन कानून को लेकर बहस तेज है और अब यह विवाद अजमेर शरीफ दरगाह तक जा पहुंचा है। यहां दो अहम पक्ष दरगाह दीवान और खादिमों की संस्था अंजुमन इस मुद्दे पर आमने-सामने आ खड़े हुए हैं।
सैयद नसरुद्दीन चिश्ती, जो अजमेर दरगाह के दीवान के उत्तराधिकारी और ऑल इंडिया दरगाह काउंसिल के अध्यक्ष हैं, उन्होंने खुले तौर पर वक्फ बिल का समर्थन करते हुए कहा कि “यह कानून वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता लाएगा, भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और वक्फ फंड का इस्तेमाल सही मायनों में गरीब मुसलमानों की भलाई के लिए हो सकेगा।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि “मुसलमानों को वर्षों तक केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया, जिससे वे पीछे छूट गए। अब सरकार उन्हें मुख्यधारा में लाने की कोशिश कर रही है और यह कानून उसी दिशा में एक कदम है।”
लेकिन दीवान की यह राय दरगाह में ही विवाद का कारण बन गई। दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन भड़क गई है। अंजुमन के सचिव सरवर चिश्ती ने इसे मुसलमानों के खिलाफ साजिश करार देते हुए चेतावनी दी कि “अगर यह कानून वापस नहीं लिया गया तो मुस्लिम समाज सड़कों पर उतर जाएगा। हमें अपनी शेरवानी भी उतारनी पड़ी तो पीछे नहीं हटेंगे।”
सरवर चिश्ती ने बिल में मौजूद उस प्रावधान पर खास आपत्ति जताई जिसमें वक्फ दानदाता के लिए "पांच साल से प्रैक्टिसिंग मुसलमान" होने की शर्त रखी गई है। उन्होंने सवाल उठाया कि “सरकार तय नहीं कर सकती कि कौन मुसलमान है और कौन नहीं।”
उन्होंने किराएदारों को कानूनी अधिकार देने की बात को भी वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की चाल बताया।
वक्फ बिल को लेकर दरगाह परिसर में ऐसा पहली बार हुआ है जब एक ही धार्मिक संस्था के भीतर इतना तीखा विरोधाभास सामने आया हो। जहां एक ओर पारदर्शिता की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर पहचान और धार्मिक अधिकारों की बहस फिर उभर आई है।