महाकुंभ विवाद: मॉडल हर्षा रिछारिया साध्वी वेश में संगम पर दिखीं, कैलाशानंद को बाहर करने की उठी मांग
Model Harsha Controversy: महाकुंभ का यह विवाद भगवा वस्त्र और संत परंपरा के मायने पर चर्चा को जन्म दे रहा है. क्या धर्म और परंपरा का पालन कठोर नियमों के साथ होना चाहिए, या इसे आधुनिक समय के अनुरूप ढालने की जरूरत है? यह बहस संत समाज और सनातन धर्म से जुड़े अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई है.

महाकुंभ मेले में एक अनोखा विवाद सामने आया है. भगवा वस्त्र धारण कर साध्वी के वेश में घूम रही मॉडल हर्षा रिछारिया की उपस्थिति ने संत समाज और सनातन परंपरा से जुड़े विवादों को जन्म दिया है. हर्षा शुक्रवार को महाकुंभ के सेक्टर 11-12 में सफेद कार में सफर करती नजर आईं.
महाकुंभ में मॉडल की मौजूदगी से संत समाज नाराज
शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप ने इस मामले में कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उनका कहना है कि निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने हर्षा को साध्वी के वेश में शाही रथ पर बैठाकर अखाड़े की परंपरा और संत संस्कृति का अपमान किया है. उन्होंने अखाड़ा परिषद और निरंजनी अखाड़े के संतों से कैलाशानंद को उनके पद से हटाने और महाकुंभ से बाहर करने की मांग की है.
हर्षा की मां का विरोध
स्वामी आनंद स्वरूप ने दावा किया कि हर्षा की मां किरन रिछारिया ने उन्हें फोन पर बताया कि उनकी बेटी अगले महीने शादी करने वाली है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि वह अपनी बेटी को संन्यास नहीं लेने देंगी.
स्वामी आनंद स्वरूप ने इस पर सवाल उठाया, "अगर वह महिला यह तय नहीं कर पाई है कि उसे शादी करनी है या संन्यास लेना है, तो उसे संतों के शाही रथ पर स्थान देना गलत है. श्रद्धालु के तौर पर शामिल होना उचित होता, लेकिन भगवा वस्त्र पहनकर रथ पर बैठना परंपराओं का उल्लंघन है."
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का समर्थन
हालांकि, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने हर्षा रिछारिया का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि हर्षा मेरी बेटी समान है. भगवा वस्त्र पहनने का अधिकार सिर्फ संतों तक सीमित नहीं है. महाकुंभ में सनातन धर्म को समझने और अनुभव करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए. यह सनातन को और मजबूती देगा.
शंकराचार्य की राय
ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी इस घटना को अनुचित ठहराते हुए कहा कि जो महिला खुद तय नहीं कर पाई है कि उसे संन्यास लेना है या शादी करनी है, उसे संतों के शाही रथ पर स्थान देना गलत है. यह परंपरा के खिलाफ है.
साध्वी वेश और विवाद का असर
यह घटना संत समाज में बढ़ते असंतोष का प्रतीक बन गई है.एक ओर, परंपराओं और संस्कृति की रक्षा के नाम पर मॉडल हर्षा की उपस्थिति पर सवाल उठाए जा रहे हैं. दूसरी ओर, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और अन्य समर्थक इसे धर्म की व्यापकता और युवाओं को आकर्षित करने का जरिया बता रहे हैं.