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काशी का अनजाना रहस्य: इन 5 तरह की लाशों को नहीं दी जाती अग्नि, नाविक ने खोला राज

काशी की पवित्र भूमि पर पांच तरह की लाशों को कभी नहीं जलाया जाता। जानिए नाविक द्वारा बताए गए इस रहस्य के पीछे की धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं।

काशी का अनजाना रहस्य: इन 5 तरह की लाशों को नहीं दी जाती अग्नि, नाविक ने खोला राज

कहते हैं काशी सिर्फ एक शहर नहीं, एक जीवित आत्मा है, जो हर पल मोक्ष की प्रतीक्षा कर रही आत्माओं को शांति देती है। गंगा के किनारे बसे इस पवित्र तीर्थ को दुनिया भर में मुक्ति-भूमि के रूप में जाना जाता है, जहां मृत व्यक्ति की चिता जलाना मोक्ष का अंतिम पड़ाव माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि काशी में पांच तरह की लाशों को कभी जलाया ही नहीं जाता?

ये बात जानकर हर कोई चौंक जाता है, लेकिन यह सत्य है और इसकी पुष्टि खुद एक नाविक ने गंगा पर सवारी करते हुए की। उसकी जुबान से निकली बातों में एक सदी पुरानी परंपरा की झलक थी, जिसमें विज्ञान और आस्था दोनों का मेल है।

1- सबसे पहले, साधु-संतों की मृत्यु पर उन्हें अग्नि नहीं दी जाती। उन्हें या तो जल में विसर्जित किया जाता है या ज़मीन में समाधि दी जाती है। ये उनके जीवन की तपस्या और सन्यास को अंतिम विदाई का विशेष तरीका है।

2- दूसरा, 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे, जिन्हें देवतुल्य माना जाता है। उनकी मासूम आत्मा को अग्नि नहीं दी जाती, बल्कि जल समर्पण से विदाई दी जाती है।

3- तीसरे, गर्भवती महिलाओं की बॉडी को जलाने पर रोक है। यह शारीरिक कारणों से भी है और धार्मिक आस्था भी इसके पीछे है। माना जाता है कि मां के साथ उसके गर्भ में पल रही आत्मा को इस तरह अग्नि देना अशुभ माना जाता है।

4- चौथी, सांप के काटे लोगों की लाशें भी नहीं जलाई जातीं। मान्यता है कि इनकी चेतना अगले 21 दिनों तक बनी रह सकती है और कुछ तांत्रिक उन्हें जीवन में वापस ला सकते हैं। इसलिए इन्हें केले के तने से बांधकर गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।

5- पांचवां और सबसे संवेदनशील मामला है कुष्ठ रोगियों का। माना जाता है कि अगर उनकी लाश को जलाया जाए तो रोग के बैक्टीरिया वायु में फैल सकते हैं। इसलिए उनकी बॉडी को भी जलाने के बजाय अन्य उपाय किए जाते हैं।

काशी की यह परंपरा सिर्फ आस्था नहीं, गहराई से जुड़ा हुआ एक जीवन दर्शन है जो बताता है कि मृत्यु भी एक कला है, एक जिम्मेदारी है और एक गूढ़ रहस्य।