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क्यों दौड़ते हैं युवक मां गणगौर को सिर पर लेकर? जानिए बीकानेर की अनूठी परंपरा

Bikaner Gangaur Festival: बीकानेर में गणगौर पर्व के दौरान सिर पर मां गणगौर की प्रतिमा लेकर युवाओं ने ऐतिहासिक दौड़ लगाई। यह अनूठी परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है और आज भी हजारों लोगों को जोड़ती है भक्ति और संस्कृति से।

क्यों दौड़ते हैं युवक मां गणगौर को सिर पर लेकर? जानिए बीकानेर की अनूठी परंपरा
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राजस्थान की सांस्कृतिक आत्मा को अगर किसी उत्सव में सजीव रूप में देखना हो, तो बीकानेर का गणगौर पर्व उसका सबसे खूबसूरत उदाहरण है। इस बार भी बीकानेर की गलियों में श्रद्धा, उमंग और परंपरा का ऐसा संगम देखने को मिला, जिसने हर किसी को भावविभोर कर दिया।

हर साल की तरह इस बार भी चौतीना कुआं से भुजिया बाजार तक मां गणगौर की प्रतिमा को सिर पर लेकर युवाओं ने दौड़ लगाई। यह दौड़ महज एक रस्म नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों से बहते इतिहास की धड़कन है। दौड़ की शुरुआत होते ही हजारों की भीड़ सड़कों के दोनों ओर उमड़ पड़ी। हर आंख श्रद्धा से भरी और हर दिल इस परंपरा की गरिमा से गदगद दिखा।

प्रतिमा को सिर पर रखकर एक युवक दौड़ता है और फिर दौड़ते हुए ही वह इसे अगले को सौंप देता है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक मां गणगौर की प्रतिमा भुजिया बाजार पंचायत की चौकी तक नहीं पहुंच जाती। वहां पहुंचते ही भक्तों द्वारा गणगौर का स्तुति गान होता है और महिलाएं पारंपरिक गीत "म्हे तो गवर भोळाय घर आय गया राज" गाकर वातावरण को आध्यात्मिक कर देती हैं।

इस परंपरा की जड़ें इतिहास में हैं। कहा जाता है कि रियासतकाल में दीवान कर्मचंद बच्छावत की गणगौर को लूटने की कोशिश की गई थी। तब उन्होंने अपने गुरू भादो जी को प्रतिमा की रक्षा की जिम्मेदारी दी। भादो जी प्रतिमा को लेकर दौड़ते हुए सुरक्षित स्थान तक पहुंचे। उसी घटना की स्मृति में आज भी यह दौड़ आयोजित होती है।

बीकानेर का गणगौर उत्सव सिर्फ धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध है। घरों में पूजन, गलियों में गीत, घुड़ला घुमाने की रस्में और मेलों की रौनक—ये सब मिलकर इस उत्सव को जीते-जागते लोक उत्सव में बदल देते हैं।