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तेवर ऐसे कि बड़े-बड़े नेता भी हुए पस्त ! पढ़ें वुसंधरा राजे की शाही विरासत से सियासी ताकत का सफर

वसुंधरा राजे की राजनीतिक यात्रा और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर जानकारी। राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में उनकी उपलब्धियों और चुनौतियों को जानें।

तेवर ऐसे कि बड़े-बड़े नेता भी हुए पस्त ! पढ़ें वुसंधरा राजे की शाही विरासत से सियासी ताकत का सफर

जयपुर।  जब बात राजस्थान के तेज तर्रार नेताओं की होती है तो वसुंधरा राजे का नाम जरुर लिया जाता है। उनके सख्त तेवर आज भी बड़े-बड़े की कुर्सी हिला देते हैं। ग्वालियर की बेटी, धौलपुर की बहू और राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने वाली राजे किसी पहचान की मोहताज नहीं है। उनका एक बयान राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा देता है। ऐसे में हम आपके लिए वसुंधरा राजे की सियासी कहानी लेकर आए हैं। 

राजघराने से राजनीति तक का सफर 

वसुंधरा राजे का जन्म ग्वालियर में 8 मार्च 1953 को हुआ था। उनकी माता विजियाराजे‌ सिंधिया राजनीति का बड़ा नाम थीं। शुरुआती शिक्षा के साथ उनका बचपन ग्वालियर में बीता। इसलिए राजे को ग्वालियर की बेटी कहा जाता है। वसुंधरा का विवाह धौलपुर राजघराने के युवराज हेमंत सिंह से हुआ था और वह धौलपुर की बहू बन गई लेकिन यह रिश्ता ज्यादा नहीं चला और 1 साल के भीत दोनों अलग हो गए। जिस वक्त वसुंधरा का तलाक हुआ वह गर्भवती थीं। इसके बाद उन्होंने बेटे दुष्यंत को जन्म दिया। 

जब राजस्थान को मिली पहली महिला मुख्यमंत्री 

वसुंधरा राजे को राजस्थान का बच्चा-बच्चा पहचानता है लेकिन उन्हें पहचान तब मिली जब उन्होंने राजस्थान की मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार संभाला। वह 2003 में पहली बार सत्ता में आई हालांकि 2008 में सत्ता से बेदखल होना पड़ा लेकिन 2013 में उन्होंने फिर से प्रदेश की मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लीं। उनके नेतृत्व में शिक्षा स्वास्थ्य समेत कई क्षेत्रों में बड़े बदलाव आए नतीजन महारानी को प्रभावशाली मुख्यमंत्री की फेहरिस्त में गिना जाने लगा। 

शीर्ष नेताओं पर भी भारी पड़ते महारानी के तेवर 

वसुंधरा राजे राजनीति की पुरानी खिलाड़ी है लेकिन उनके तेवर अभी भी बिल्कुल नए लगते हैं। मुद्दा कोई भी हो वह कभी भी अपनी बात रखने से नहीं हटती। यही वजह है समर्थक उनकी तारीफ करते नजर आते हैं। 2018 के चुनाव के बाद से आलाकमान और महारानी की मनमुटाव की खबरें किसी से छिपी नहीं है। 2018 के चुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली थी और पार्टी केवल 77 सीटें जीत पाई थी। जबकि कांग्रेस ने 99 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। इस हार के बाद बीजेपी ने हार का ठीकरा राजी के सिर फोड़ा और वसुंधरा को भी कई आलोचना का सामना करना पड़ा। 

चुनावी परिणाम वसुंधरा राजे के लिए बुरा वक्त लेकर आए जो लोग पहले दबे मुंह से राजे के खिलाफ बोलते थे अब वह सामने आकर आलोचना करने लगे। वैसे तो वसुंधरा ने कभी सार्वजनिक तौर पर आलाकमान से विवाद की पुष्टि नहीं की लेकिन उनके कार्यकर्ताओं के बयान इस पर समय-समय में मोहर लगाते रहे। वसुंधरा राजे का कहना था विधानसभा चुनाव में मिली हार का कारण चुनावी रणनीति और संगठन का कमजोर प्रदर्शन था लेकिन रणनीतिकार से आपसी गुटबाजी से भी जोड़कर देखते रहे। बताया जाता है 2018 के दौरान पार्टी के कई नेता वसुंधरा राजे से खुश नहीं थे। यही वजह रही वह धीरे-धीरे पार्टी से दूरी बनाती गई लेकिन उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी। आलाकमान से रिश्तों में दूरी के बावजूद वसुंधरा को राजस्थान का बड़ा नेता माना जाता है और यह संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं कि राजे भविष्य में बीजेपी रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाएंगी। फिलहाल इस वक्त में प्रदेश की राजनीति में उतना सक्रिय नहीं है। ऐसे में देखना होगा आने वाले सालों में उनका सियासी भविष्य क्या होगा।