वसुंधरा को राजनीति में लाने वाला कौन? जानिए पॉलिटिकल ट्रांसफॉर्मेशन के पीछे की कहानी
वसुंधरा राजे के राजनीति में आने की कहानी बेहद दिलचस्प है। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत की सलाह ने उनका राजनीतिक जीवन बदला। जानिए धौलपुर से झालावाड़ तक का उनका सफर।

राजस्थान की राजनीति में एक ऐसा नाम जिसने अपने अनुभव, साहस और नेतृत्व से पार्टी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया वह नाम है वसुंधरा राजे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वसुंधरा के राजनीतिक जीवन की नींव किसने रखी? ये कोई और नहीं बल्कि भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति और राजस्थान के कद्दावर नेता भैरों सिंह शेखावत थे।
वसुंधरा राजे ने राजनीति में कदम रखने से पहले 1984 में मध्यप्रदेश के भिंड लोकसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने शेखावत से चर्चा की। शेखावत ने सुझाव दिया कि वसुंधरा को उनके ससुराल धौलपुर भेजा जाए, जहां से वे 1985 में चुनाव लड़ीं और जीत गईं। यही जीत उनके राजनीतिक सफर की असल शुरुआत थी।
लेकिन असली मोड़ तब आया, जब शेखावत ने बिना बताए मंच से एलान कर दिया कि वसुंधरा अब झालावाड़ से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। वसुंधरा को यह सुनकर बड़ा झटका लगा, क्योंकि वे धौलपुर में खुश थीं और झालावाड़ के बारे में कुछ नहीं जानती थीं। उन्होंने रोते हुए अपने राजनीतिक मार्गदर्शक भैरों सिंह शेखावत, जिन्हें वह प्यार से बाबोसा कहती थीं और उनको फोन किया और कहा, "ये आपने क्या कर दिया?"
शेखावत ने उन्हें समझाया कि राजनीति में बदलाव और जोखिम जरूरी हैं। उन्होंने भरोसा दिलाया कि सांसद बनना उनके लिए बड़े अवसर का दरवाजा खोलेगा। वसुंधरा ने आखिरकार शेखावत की बात मानी, झालावाड़ पहुंचीं और भारी बहुमत से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचीं।
यहीं से उनकी ताकतवर राजनीतिक पारी शुरू हुई। वे न सिर्फ दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं, बल्कि आज भी भाजपा की वरिष्ठ और रणनीतिक नेता के तौर पर जानी जाती हैं।