जानिए कहां से शुरु हुई वसुंधरा राजे और सचिन पायलट के बीच तकरार, साल 2003 की है बात, तब दोनों नेता नहीं थे पार्टी के खास!
ये बात 2003 के विधानसभा चुनाव की है। प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री पद पर अशोक गहलोत थे। ये वो ही दौर था जब वसुंधरा राजे नेता से दिग्गज नेता बनने का सफर तय कर रही थीं।

राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट और राजस्थान बीजेपी की दिग्गज नेता वसुंधरा राजे, जोकि प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। दोनों नेताओं की पार्टी में और राजस्थान में अपनी पकड़ है। दिग्गज नेता कई बार बयानों में एक-दूसरे पर तंज भी कस चुके हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि दोनों नेताओं के बीच साल 2003 से अदावत है, जिसकी वजह थी वसुंधरा राजे की जीत और सचिन पायलट की 'पारिवारिक हार'....
राजे की जीत और पायलट के पाले में हार
दरअसल, ये बात 2003 के विधानसभा चुनाव की है। प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री पद पर अशोक गहलोत थे। ये वो ही दौर था जब वसुंधरा राजे नेता से दिग्गज नेता बनने का सफर तय कर रही थीं। भैरोसिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति बनने के बाद वसुंधरा राजे को राजस्थान बीजेपी की कमान दी गई थी। वो झालावाड़ के झालरापाटन से विधानसभा चुनाव लड़ रही थी। वसुंधरा राजे के सामने कांग्रेस के टिकट पर सचिन पायलट की मां रमा पायलट चुनाव मैदान में उतरी थी।
इस चुनाव में सचिन पायलट की मां रमा पायलट को हार का सामना करना पड़ा था। वसुंधरा राजे न सिर्फ चुनाव जीती, बल्कि राजस्थान की मुख्यमंत्री भी बनीं। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट को कांग्रेस ने दौसा लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा। सचिन पायलट जीतकर संसद पहुंचे। फिर साल 2009 में पार्टी ने अजमेर से पायलट को टिकट दिया। यहां से जीतकर भी संसद पहुंचे।
जब सचिन पायलट को पार्टी ने दी थी कमान
साल 2013 में राजस्थान में बीजेपी की सरकार बनी और वसुंधरा राजे दूसरी बार मुख्यमंत्री बनी थी। जिसेक बाद कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान की कमान सचिन पायलट को दी। फिर क्या...सचिन पायलट ने सड़क पर राजे सरकार के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। वो पूर्वी राजस्थान पहुंचे और वसुंधरा राजे के प्रभाव वाले इलाकों में दौरा कर गुर्जर वोटर्स को अपने साथ ले आए। जिसका असर साल 2018 में दिखा और 2018 में बीजेपी हार गई।