राजस्थान विधानसभा में हंगामा: गुस्से में स्पीकर ने छोड़ा आसन, बोले- आप ही चला लो विधानसभा!
Rajasthan Vidhan sabha Drama: राजस्थान विधानसभा में अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान बड़ा विवाद खड़ा हो गया. नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के बीच तीखी बहस छिड़ गई. जब जूली ने विधायकों को बोलने देने की मांग की, तो स्पीकर भड़क उठे और गुस्से में कागज फेंकते हुए बोले, "आप ही चला लो विधानसभा, मैं तो चला." हालांकि, कुछ देर बाद माहौल शांत हुआ और स्पीकर ने तीन विधायकों को बोलने का मौका दिया. यह घटना राजस्थान की राजनीति में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाती है. पढ़ें पूरी खबर.

राजस्थान विधानसभा का सत्र हमेशा की तरह गर्मा-गर्म बहसों का गवाह बना, लेकिन बीती रात जो हुआ, उसने पूरे सदन का माहौल पल भर में बदल दिया. अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के बीच तीखी बहस छिड़ गई. माहौल तब गरमा गया जब जूली ने विधायकों को बोलने देने की मांग रखी और स्पीकर ने इसे ठुकरा दिया. इसके बाद बहस इतनी बढ़ गई कि देवनानी ने गुस्से में कागज फेंकते हुए कह दिया, "आप ही चला लो विधानसभा, मैं तो चला."
कैसे भड़के स्पीकर?
विधानसभा की कार्यवाही के दौरान जब उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को जवाब देने के लिए बुलाया गया, तब नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि अब तक तीन विधायक बोल नहीं पाए हैं, उन्हें भी अपनी बात रखने दी जाए. इस पर स्पीकर देवनानी ने असहमति जताई और यही से तकरार शुरू हो गई.
जूली ने फिर दोहराया, "क्या फर्क पड़ता है अगर कुछ और विधायकों को भी बोलने दिया जाए?" यह सुनते ही स्पीकर भड़क गए और गुस्से में बोले, "फर्क कैसे नहीं पड़ता?" उन्होंने झल्लाकर कागज फेंक दिए और आसन से उठते हुए कहा, "रात 12 बजे तक आप ही चलाइए सदन, मैं जा रहा हूं."
जूली के एक सवाल से पलटा माहौल
जैसे ही स्पीकर उठकर जाने लगे, जूली ने शांत भाव से कहा, "आप नाराज क्यों होते हो?" यह सवाल देवनानी को कुछ सोचने पर मजबूर कर गया. कुछ क्षणों के लिए पूरा सदन एकदम शांत हो गया. फिर स्पीकर धीरे-धीरे वापस अपनी सीट पर लौटे और कार्यवाही आगे बढ़ी.
गुस्सा शांत होने के बाद उन्होंने कांग्रेस के तीन विधायकों को बोलने का अवसर दिया. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सदन का माहौल तनावपूर्ण रहा, लेकिन अंततः कार्यवाही सुचारू रूप से चली.
राजनीतिक संदेश और नतीजे
इस घटनाक्रम ने राजस्थान की राजनीति में कई नए संकेत दिए हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ती तल्खी, असहमति के स्वर और सदन में गूंजते तीखे शब्द अब आम हो गए हैं. यह साफ दिखाता है कि लोकतंत्र में असहमति और तर्क-वितर्क जरूरी हैं, लेकिन गरिमा बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है.