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वसुंधरा राजे सिंधिया और डॉ. किरोड़ी लाल मीणा में रहा है पुराना विवाद, क्या वसुंधरा की वापसी से खफा हैं किरोड़ी बाबा ?

एक ओर वसुंधरा राजे सिंधिया की बीजेपी में वापसी हो गई है। वहीं दूसरी ओर किरोड़ी बाबा बीजेपी से नाराज हैं। क्या वसुंधरा की वापिस एंट्री इसके पीछे कारणा हो सकती है?

वसुंधरा राजे सिंधिया और डॉ. किरोड़ी लाल मीणा में रहा है पुराना विवाद, क्या वसुंधरा की वापसी से खफा हैं किरोड़ी बाबा ?

वसुंधरा राजे और किरोड़ी लाल मीणा के बीच कुछ समय से विवाद और मतभेद रहे हैं। यह विवाद पार्टी में उनकी व्यक्तिगत और राजनीतिक भूमिकाओं को लेकर था। हालांकि दोनों नेताओं का राजस्थान में बड़ा प्रभाव है, लेकिन उनके बीच मतभेदों ने कभी न कभी पार्टी के भीतर हलचल मचाई है। आइए कुछ प्रमुख पहलुओं पर नज़र डालते हैं, जो उनके बीच विवाद के कारण बने-

1. राजपूत और मीणा समुदाय का मामला:

वसुंधरा राजे राजपूत समुदाय से आती हैं और उनकी लोकप्रियता खासतौर पर राजपूतों में है। वहीं, किरोड़ी लाल मीणा का प्रभाव मीणा समुदाय में ज्यादा है। राजस्थान में इन दोनों समुदायों के बीच हमेशा से राजनीति का मुकाबला रहता है और कभी-कभी इन दोनों नेताओं के बीच सत्ता और समर्थन के लिए प्रतिस्पर्धा भी रही है। यह तनाव उनके संबंधों में उभरता है।

2. राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं:

किरोड़ी लाल मीणा बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं लेकिन उनकी अपने नेतृत्व के लिए काफी महत्वाकांक्षाएं रही हैं। कहा जाता रहा है कि वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें कई बार यह महसूस हुआ कि पार्टी में उनका योगदान और स्थान कम करके आंका जा रहा है। खासकर जब उन्हें सरकारी पदों या अन्य प्रशासनिक जिम्मेदारियों में प्राथमिकता नहीं दी गई। इससे वह नाराज हो गए थे।

3. 2018 विधानसभा चुनाव में तनाव:

2018 विधानसभा चुनाव के दौरान, किरोड़ी लाल मीणा ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। उनका आरोप था कि वसुंधरा राजे की मुख्यमंत्री के रूप में नीतियां और प्रशासनिक निर्णय पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुए हैं। उन्होंने राजे के नेतृत्व में पार्टी की हार की संभावना जताई और सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी।

इस दौरान मीणा ने पार्टी के भीतर अपने समर्थकों के लिए भी आवाज उठाई और उनकी नाराजगी एक बड़े विवाद का रूप ले सकती थी। उनका मानना था कि वसुंधरा राजे ने मीणा समुदाय के हितों की अनदेखी की है और इससे पार्टी को नुकसान हुआ है।

4. निजी विवाद और बयानबाजी:

समय-समय पर, किरोड़ी लाल मीणा और वसुंधरा राजे के समर्थकों के बीच भी विवाद बढ़े हैं और बयानबाजी ने स्थिति को और तनावपूर्ण बना दिया। मीणा ने सार्वजनिक रूप से वसुंधरा राजे के प्रशासन पर हमला किया था जिससे दोनों के बीच राजनीतिक दूरी और बढ़ी।

5. संघर्ष की संभावना और भविष्य:

वसुंधरा राजे और किरोड़ी लाल मीणा के बीच का विवाद पार्टी के भीतर शक्ति के वितरण और नेतृत्व को लेकर था। जबकि वसुंधरा राजे बीजेपी की सबसे बड़ी चेहरा मानी जाती हैं, किरोड़ी लाल मीणा भी अपने समुदाय में प्रभावशाली नेता हैं। अगर दोनों नेताओं के बीच मतभेदों का समाधान नहीं हुआ, तो इससे बीजेपी की राजनीति में संघर्ष और विभाजन की स्थिति बन सकती थी।

हालांकि दोनों नेताओं के बीच विवाद रहा है। लेकिन यह भी सच है कि बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी में कभी-कभी नेतृत्व और रणनीति को लेकर मतभेद होते हैं। वसुंधरा राजे और किरोड़ी लाल मीणा के बीच का विवाद पार्टी के भीतर राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हमेशा एक नासमझी के रूप में दिखे। राजनीतिक रणनीतियों के तहत समय-समय पर दोनों नेताओं को एक-दूसरे के साथ तालमेल भी बनाना पड़ता है।

वसुंधरा की वापसी और बाबा की नाराजगी

वसुंधरा राजे की राजनीति में वापसी और उनकी संभावित मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से किरोड़ी लाल मीणा की नाराजगी की संभावना है। दरअसल, राजस्थान में दोनों नेताओं के बीच पहले भी मतभेद रहे हैं और वसुंधरा राजे की वापसी के साथ इस तनाव के और बढ़ने की संभावना है। इसके कई कारण हो सकते हैं:

1. मुख्यमंत्री पद की दावेदारी:

किरोड़ी लाल मीणा ने कई बार यह इशारा किया है कि वह भी राज्य के मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हैं । अगर वसुंधरा राजे की वापसी के साथ मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा मजबूत होता है, तो मीणा इसे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ समझ सकते हैं। मीणा ने हमेशा यह दावा किया है कि उन्हें बीजेपी में उचित सम्मान और स्थान नहीं मिला। वसुंधरा राजे के प्रभाव से उनकी राजनीति को नुकसान हो सकता है, खासकर अगर पार्टी फिर से उन्हें दरकिनार करती है।

2. राजपूत और मीणा समुदाय का मुद्दा:

वसुंधरा राजे राजपूत समुदाय से आती हैं, और उनका खासा प्रभाव इस समुदाय में है। वहीं, किरोड़ी लाल मीणा का प्रभाव मीणा समुदाय में है, जो राजस्थान में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है। इन दोनों समुदायों के बीच प्रतिस्पर्धा हमेशा से राजनीति में रही है। मीणा समुदाय की आवाज़ को उठाने के कारण उन्हें लगता है कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में मीणा समुदाय को अनदेखा किया गया। ऐसे में वसुंधरा राजे की वापसी से मीणा नाराज हो सकते हैं, क्योंकि इससे उनके समुदाय के हितों की अनदेखी फिर से हो सकती है।

3. 2018 विधानसभा चुनाव की यादें:

2018 के विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। उस समय किरोड़ी लाल मीणा और अन्य नेताओं ने वसुंधरा राजे की कार्यशैली की आलोचना की थी। मीणा ने आरोप लगाया था कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में पार्टी और सरकार के फैसलों ने राज्य में बीजेपी को नुकसान पहुंचाया। इस वजह से उनके और वसुंधरा राजे के बीच राजनीतिक मतभेद बढ़ गए थे।

अगर बीजेपी वसुंधरा राजे को फिर से पार्टी का चेहरा बनाती है, तो मीणा के लिए यह निराशाजनक हो सकता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए एक नया नेतृत्व चाहिए।

4. मीणा का आत्मनिर्भर रुख:

मीणा को लगता है कि राज्य में मीणा समुदाय का समर्थन उन्हें बीजेपी से अधिक मजबूत बना सकता है । वसुंधरा राजे की वापसी से अगर बीजेपी उनके मार्ग में अवरोध पैदा करती है तो मीणा का रुख और कड़ा हो सकता है।

5. संघर्ष की स्थिति:

अगर वसुंधरा राजे की वापसी होती है और उनका प्रभाव बीजेपी में फिर से मजबूत होता है, तो यह किरोड़ी लाल मीणा और उनके समर्थकों के लिए असंतोष का कारण बन सकता है। मीणा ने कभी सार्वजनिक रूप से यह भी कहा था कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी को नुकसान हुआ, और वे पार्टी के भीतर एक नया नेतृत्व चाहते थे। ऐसे में, राजे की वापसी से मीणा का असंतोष और भी बढ़ सकता है।

वसुंधरा राजे की राजनीति में वापसी से किरोड़ी लाल मीणा की नाराजगी की संभावना है, खासकर अगर यह उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और मीणा समुदाय के हितों के खिलाफ जाती है। मीणा की आलोचनाएं और उनके नेतृत्व के दावे यह संकेत देते हैं कि अगर राजे फिर से बीजेपी का चेहरा बनती हैं, तो पार्टी के भीतर तनाव और मतभेद बढ़ सकते हैं। यह स्थिति बीजेपी के लिए एक चुनौती हो सकती है, क्योंकि पार्टी को अपने भीतर के इन मतभेदों को सुलझाने की आवश्यकता होगी, ताकि चुनावी रणनीतियों पर इसका नकारात्मक असर न पड़े।