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कौन है जसोल धाम की माजीसा रानी भटियाणी, क्यों इनके दर्शन के लिए लगती है हजारों की भीड़

राजस्थान के जसोल धाम में रानी भटियाणी, जिन्हें माजीसा के नाम से पूजा जाता है, लोक आस्था का बड़ा केंद्र हैं। उनके चमत्कारी इतिहास और भक्तों की श्रद्धा से यह मंदिर दूर-दूर से लोगों को आकर्षित करता है। हर साल भादवा सुदी तेरस पर यहां भव्य मेले का आयोजन होता है।

कौन है जसोल धाम की माजीसा रानी भटियाणी, क्यों इनके दर्शन के लिए लगती है हजारों की भीड़

राजस्थान में कई फेमस मंदिर है जिनके दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इसके अलावा कई लोक देवी-देवताओं के भी मंदिर है, जो लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं। यहां के फेमस लोक देवता रामदेवजी, पाबू जी, तेजाजी, गोगाजी, मल्लीनाथ के अलावा जसोल धाम के प्रति भी लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। यहां पर रोजाना सैकड़ों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। जसोल में रानी भटियाणी को माजीसा के रूप में भी पूजा जाता है और यहां पर हर साल भादवा सुदी तेरस के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है।

क्या है माजीसा का इतिहास

राजस्थान मेमपुजी कही जाने वाली रानी भटियाणी (माजीसा) के बारे में कहते हैं कि इन रानी भटियाणी का नाम स्वरूप कंवर था। उनका जन्म जैसलमेर में जोगीदास गांव में ठाकुर श्री जोगराज सिंह जी भाटी के वंश में साल 1725 में हुआ था। इनकी शादी जसोल के राजा राव कल्याण सिंह से मात्र 20 वर्ष की उम्र में ही हुआ था, इसके पहले कल्याण सिंह की पहली शादी रानी देवड़ी थीं।

उनकी पहली पत्नी स्वरूप कंवर से ईर्ष्या करती थी। रानी स्वरूप कंवर के एक पुत्र हुआ था, जिनका नाम कुंवर लाल सिंह था और उसके कुछ समय बाद देवड़ी ने भी अपने पुत्र प्रतापसिंह कंवर को जन्म दिया था। इनके बारे में कहा जाता है कि रानी देवड़ी ने अपने बेटे को रियासत का मालिक बनाने के लिए दासी के हाथों लालसिंह को जहर पिला कर मरवा दिया था। इसके बाद रानी स्वरूप कंवर अपने बेटे की मौत के बाद बीमार हो गई और उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए, इसके बाद उनका सतीत्व उभर कर आया।

दीपक की रोशनी से चमक गया था श्मशान

कहा जाता है कि रानी स्वरूप कंवर से मिलने के लिए उनके पीहर जैसलमेर से 2 ढोली शंकर और ताजिया, राव कल्याण सिंह जी के दरबार में आए। जब उन्होंने राजा से रानी स्वरूप कंवर से मिलने की इच्छा जताई, तो रानी देवड़ी ने उनको रानी की समाधि के पास भेज दिया। उनकी मृत्यु को देख कर दोनों लोग दुखी होकर अरदास लगाने लगे। इन दोनों ढोलियों की पुकार को सुनकर रानी उनके सामने प्रकट हुई और उनकी समाधि के आस पास और शमसान में हजारों दीपक जल उठे।

रानी के इस चमत्कार को ढोलियो ने ढोल बजाकर खूब बखान किया। इसके बाद रानी के चमत्कारों का सिलसिला जारी रहा और वह अपने भक्तों के दुखों को दूर करती रहीं। तब से आज तक लोग रानी स्वरूप कुंवर की पूजा करते है और अपने दुखों को दूर करने व सन्तान प्राप्ति के लिए रानी भटियाणी की शरण में आते हैं।