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1937 की गोल्डन जुबली, Bikaner की ऐतिहासिक परंपरा, दिलों पर राज करने वाले Maharaja Ganga Singh की दिलचस्प कहानी

बीकानेर के राजकीय गंगा संग्रहालय में संग्रहीत "गोल्डन जुबली" नामक पुस्तक इस परंपरा की साक्षी है। इस पुस्तक में 1937 की एक दुर्लभ तस्वीर दर्ज है।

1937 की गोल्डन जुबली, Bikaner की ऐतिहासिक परंपरा, दिलों पर राज करने वाले Maharaja Ganga Singh की दिलचस्प कहानी

क्या आपने कभी सुना है कि किसी राजा को उनके वजन के बराबर सोने-चांदी में तौलकर प्रजा को बांट दिया गया हो? बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह जी की ये कहानी सिर्फ सुनने में ही नहीं, बल्कि हकीकत में भी उतनी ही रोमांचक और प्रेरणादायक है।

गंगा संग्रहालय में दर्ज है ये ऐतिहासिक घटना

बीकानेर के राजकीय गंगा संग्रहालय में संग्रहीत "गोल्डन जुबली" नामक पुस्तक इस परंपरा की साक्षी है। इस पुस्तक में 1937 की एक दुर्लभ तस्वीर दर्ज है, जिसमें महाराजा गंगा सिंह जी को सोने और चांदी में तौला जा रहा है। तस्वीर में, वे एक पंडित के पास बैठकर सोने-चांदी के आभूषणों का अवलोकन करते भी दिखते हैं। ये परंपरा, जिसे तुलादान कहते हैं, भारत के सनातन धर्म की गहरी परंपराओं का हिस्सा रही है।

सोने-चांदी का दान और कल्याणकारी राजा

महाराजा गंगा सिंह बीकानेर के 21वें राजा थे और अपनी कल्याणकारी नीतियों के लिए जाने जाते थे। उनका मानना था कि राजा का कर्तव्य सिर्फ शासन करना नहीं, बल्कि अपनी प्रजा के लिए कल्याणकारी कार्य करना भी है। उन्होंने 1937 में अपने शासन के 50 वर्ष पूरे होने पर गोल्डन जुबली मनाई, जिसमें उन्होंने जनता के बीच स्वर्ण और आभूषण वितरित किए।

अपने वजन के बराबर सोने का दान

जब अन्य राजा अपने वजन के बराबर धन संग्रह करते थे, तब महाराजा गंगा सिंह जी ने एक अनोखी मिसाल कायम की। वे हर साल अपने वजन के बराबर का सोना गरीब और जरूरतमंदों में बांटते थे। ये परंपरा उनके न्यायप्रिय और परोपकारी स्वभाव का परिचायक है।

आज भी है प्रासंगिक

आज भी बीकानेर में तुलादान की ये परंपरा जीवित है। इसका उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों की मदद करना और जनहित कार्यों में योगदान देना है।

एक प्रेरणा की मिसाल

महाराजा गंगा सिंह की ये कहानी सिर्फ बीकानेर की धरोहर नहीं, बल्कि इंसानियत और परोपकार का जीता-जागता उदाहरण है। उनका त्याग और उदारता हमें सिखाता है कि असली राजा वही होता है जो अपनी प्रजा की भलाई के लिए जीता है।