राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया और दिया कुमारी दोनों ही प्रमुख बीजेपी नेता हैं, लेकिन इन दोनों के बीच तवज्जो का सवाल अक्सर चर्चा का विषय रहा है। वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री हैं और बीजेपी की एक बड़ी नेता मानी जाती हैं। वहीं, दिया कुमारी भी राजपूत समुदाय से आने वाली एक प्रभावशाली नेता हैं, लेकिन उनका राजनीतिक प्रभाव वसुंधरा राजे के मुकाबले थोड़ा कम माना जाता है, कम से कम राज्य के स्तर पर।
राजस्थान में वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री के रूप में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे और पार्टी के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी, इसलिए उन्हें राज्य में ज्यादा तवज्जो मिलती है। वहीं, दिया कुमारी का स्थान खासतौर पर राजपूत समुदाय में प्रभावशाली हो सकता है, लेकिन राज्य में उनका राजनीतिक कद वसुंधरा राजे से कम नजर आता है।
कुल मिलाकर, वसुंधरा राजे को राजस्थान में ज्यादा तवज्जो दी गई है, विशेषकर उनके मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल और बीजेपी की राज्य राजनीति में उनकी लंबी भूमिका के कारण।
विधानसभा चुनाव में क्यों मिली दिया कुमारी को ज्यादा वैल्यू
राजस्थान विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे सिंधिया की जगह दिया कुमारी को चुने जाने का कारण कुछ रणनीतिक फैसलों पर आधारित हो सकता है। इस चुनावी बदलाव के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं:
राजनीतिक बदलाव और ताजगी की आवश्यकता: वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी को लगातार दो विधानसभा चुनावों (2013 और 2018) में चुनौती का सामना करना पड़ा। 2018 में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, जिससे पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर सवाल उठे। पार्टी को यह महसूस हुआ कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लगातार हार के बाद नया चेहरा और ताजगी की आवश्यकता हो सकती है, जिसे दिया कुमारी जैसे युवा और नई ऊर्जा से भरपूर नेता से जोड़ा जा सकता है।
राजपूत वोटबैंक को ध्यान में रखना: दिया कुमारी राजपूत समुदाय से आती हैं, जो राजस्थान में एक महत्वपूर्ण जाति समूह है। बीजेपी ने यह रणनीति अपनाई हो सकती है कि दिया कुमारी के माध्यम से राजपूत वोटों को आकर्षित किया जाए, खासकर ऐसे समय में जब पार्टी को चुनावी जीत की जरूरत थी। राजपूत समुदाय में दिया कुमारी का अच्छा प्रभाव है, और उनका नाम चुनावी मैदान में आने से पार्टी को इस समुदाय से समर्थन मिल सकता था।
वसुंधरा राजे के साथ विवाद और विरोध: वसुंधरा राजे को कुछ पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से विरोध का सामना करना पड़ा था, और उन्हें लेकर पार्टी में असंतोष था। दिया कुमारी को उम्मीदवार बनाने से शायद पार्टी यह संकेत देना चाहती थी कि अब पार्टी में नए नेतृत्व की ओर बढ़ने का समय है।
कुशल नेतृत्व का आभाव: वसुंधरा राजे का मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल विवादित रहा, और उनकी नीतियां और प्रशासनिक फैसले भी कुछ मुद्दों पर सवालों के घेरे में थे। पार्टी को लगा कि दिया कुमारी का नेतृत्व एक नई दिशा में पार्टी को ले जा सकता है।
इन सब कारणों से दिया कुमारी को वसुंधरा राजे की जगह राजस्थान विधानसभा चुनावों के लिए प्रमुख चेहरा चुना गया।
राजस्थान में बीजेपी को अब क्यों आ रही वसुंधरा राजे की याद
राजस्थान में बीजेपी को वसुंधरा राजे की याद आने के कई कारण हो सकते हैं, और ये पार्टी की वर्तमान स्थिति और चुनावी परिप्रेक्ष्य से जुड़े हुए हैं। कुछ महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं:
नेतृत्व की कमी: वसुंधरा राजे के बिना पार्टी में नेतृत्व की एक स्पष्ट कमी महसूस हो रही है। जब राजे मुख्यमंत्री थीं, तो उनकी नेतृत्व शैली और पार्टी को एकजुट रखने की क्षमता ने उन्हें पार्टी का प्रमुख चेहरा बना दिया था। वर्तमान में, दिया कुमारी जैसे नेता उतनी लोकप्रियता और प्रभाव नहीं बना पाए हैं, जिससे पार्टी को वसुंधरा राजे की नेतृत्व क्षमता की याद आ रही है।
चुनावी परिणामों में कमी: 2018 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद, पार्टी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन हुआ और दिया कुमारी जैसी नई चेहरों को आगे लाया गया। हालांकि, पार्टी को तब से राजस्थान में जीत की दर में कमी आई है, और 2023 में भी बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पाई। इस कारण पार्टी को वसुंधरा राजे की अनुभव और चुनावी सफलता की याद आ रही है, जो उन्होंने पहले हासिल की थी।
राजपूत समुदाय का समर्थन: वसुंधरा राजे राजपूत समुदाय से आने वाली नेता थीं और इस समुदाय में उनका अच्छा प्रभाव था। राजपूत समुदाय राजस्थान की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और बीजेपी को यह महसूस हो सकता है कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में पार्टी को इस समुदाय से अधिक समर्थन मिल सकता है।
विधानसभा चुनावों में जीत की जरूरत: राजस्थान में बीजेपी के लिए आगामी चुनावों में जीत बहुत महत्वपूर्ण है, और पार्टी को लगता है कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी को राज्य में अच्छा प्रदर्शन मिल सकता था। उनके नेतृत्व में पार्टी को व्यापक जन समर्थन और स्थिरता मिली थी, और पार्टी शायद उसी सफलता को दोहराना चाहती है।
विवादित नेताओं से निपटने की चुनौती: वसुंधरा राजे के बिना बीजेपी के अंदर कुछ नेताओं के बीच विवाद बढ़ गए हैं, और पार्टी को उनके साथ सामंजस्य बनाने में मुश्किलें आ रही हैं। वसुंधरा राजे के नेतृत्व में पार्टी में ज्यादा अनुशासन और एकता दिखाई देती थी, और अब पार्टी को उन दिनों की याद आ रही है।
इन कारणों से बीजेपी को अब वसुंधरा राजे की नेतृत्व क्षमता और उनके दौर की याद आ रही है, और पार्टी को शायद लगता है कि अगर वह अपने पुराने नेतृत्व को फिर से साथ लाए तो चुनावी सफलता की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।