Trendingट्रेंडिंग
विज़ुअल स्टोरी

और देखें
विज़ुअल स्टोरी

अलवर में थाने का दिल छू लेने वाला काम, कुक की बेटी की शादी में मायरा लेकर पहुंचे आबकारी वाले

अलवर के आबकारी थाने ने कुक की बेटी की शादी में मायरा पहुंचाकर निभाया मामा-भाई का फर्ज, ₹61,000 नकद और उपहार देकर रच दी इंसानियत की मिसाल।

अलवर में थाने का दिल छू लेने वाला काम, कुक की बेटी की शादी में मायरा लेकर पहुंचे आबकारी वाले

हर मां-बाप का सपना होता है कि उनकी बेटी की विदाई खुशी और सम्मान के साथ हो। लेकिन जब हालात आर्थिक रूप से कमजोर हों, तब यह सपना अक्सर अधूरा रह जाता है। मगर कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो इंसानियत की मिसाल बन जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी सामने आई है राजस्थान के अलवर से, जहां आबकारी थाना का पूरा स्टाफ एक गरीब कुक की बेटी की शादी में मायरा लेकर पहुंचा और रिश्तों की एक नई परिभाषा लिख दी।

बिरमा जाटव, जो 2017 से थाने में संविदा पर कुक का काम कर रही हैं, के लिए यह दिन किसी चमत्कार से कम नहीं था। ₹5500 महीने की मामूली तनख्वाह में घर चलाना, पति रिक्शा चलाते हैं और बेटा रेडीमेड दुकान पर काम करता है। ऐसे में बेटी मोनिका की शादी करना उनके लिए पहाड़ जैसा काम था।

लेकिन तभी बिरमा के 'थाने वाले भाइयों' ने कुछ ऐसा किया जिससे पूरे इलाके में चर्चा फैल गई। शादी से एक दिन पहले थाना प्रभारी सतीश कुमार के नेतृत्व में 14-15 पुलिसकर्मी मायरा लेकर बिरमा के घर पहुंचे। मायरे में ₹61,000 नकद, 11 जोड़ी सूट, साड़ियां, और ज़रूरी सामान शामिल था। उन्होंने बिरमा की बेटी को आशीर्वाद देते हुए उसे अपनेपन का एहसास दिलाया, जो शायद किसी भी खून के रिश्ते से कहीं गहरा था।

शादी में मौजूद लोग इस नज़ारे को देखकर भावुक हो गए। बिरमा और मोनिका की आंखें छलक पड़ीं। वो सिर्फ मायरा नहीं था, बल्कि समाज में रिश्तों की असली ताकत और इंसानियत की ऊंचाई का प्रतीक था।

थाना इंचार्ज सतीश कुमार का कहना था, "बिरमा हमारे थाने की सदस्य जैसी हैं। अगर हम उसके साथ नहीं खड़े होते, तो क्या फायदा ऐसी ड्यूटी का?"

यह घटना न सिर्फ बिरमा के लिए यादगार बन गई, बल्कि समाज को यह भी सिखा गई कि मदद के लिए खून का रिश्ता ज़रूरी नहीं होता, सिर्फ दिल बड़ा होना चाहिए।