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जानिए कैसे बनते हैं नागा साधु, पिंड दान कर अवधूतों ने ली 'राज राजेश्वरी नागा' बनने की दीक्षा, देखिए Exclusive तस्वीरें

नागा संन्यासी बनने में सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है। उसे तीन साल तक गुरुओं की सेवा करनी होती है और अखाड़ा के नियमों को समझना होता है। इस अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। 

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महाकुंभ 2025 की अजब-गजब कहानियां और तस्वीरें रोज सामने आ रही हैं। महाकुंभ में नागा संयासी हमेशा से ही आकर्षण का क्रेंद्र रहे हैं। 

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नागा साधुओं को लेकर तमाम तरह की कहानियां और बातें प्रचलित हैं। इसी बीच महाकुंभ में 1500 अवधूतों को नागा साधु बनने की दीक्षा दी गई।

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माना जाता है कि नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले चुने हुए लोगों को अपना और अपने परिवार का पिंड दान करना पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिंडदान सांसारिक जीवन का अंतिम संस्कार होता है।

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अब महाकुंभ में नागा साधु बनने का निर्णय ले चुके अवधूतों को कैसे दीक्षा दी गई, चलिए वो समझते हैं।

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मीडिया को श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री श्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि गंगा के तट पर पहले चरण में 1,500 अवधूतों को नागा दीक्षा दी गई है। जूना अखाड़ा, संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा है। इस अखाड़े में निरंतर नागा साधुओं की संख्या बढ़ रही है।

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नागा संन्यासी बनने में सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है। उसे तीन साल तक गुरुओं की सेवा करनी होती है और अखाड़ा के नियमों को समझना होता है। इस अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। यदि अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु इस बात को लेकर निश्चिंत हो जाते हैं कि वह दीक्षा का पात्र हो गया है तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है।

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जानकारी के मुताबिक, महाकुंभ में गंगा किनारे इनका मुंडन कराया गया और 108 बार गंगा नदी में डुबकी लगवाई गई। अंतिम प्रक्रिया में पिंडदान और दंडी संस्कार किया गया। महाकुंभ में गंगा किनारे इनका मुंडन कराया गया और 108 बार गंगा नदी में डुबकी लगवाई गई। अंतिम प्रक्रिया में पिंडदान और दंडी संस्कार किया गया।

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श्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर नागा दीक्षा देते हैं। प्रयागराज के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी और नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।

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महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू हो गया है। जो कि 26 फरवरी तक चलने वाला है। माना जा रहा है कि इस बार महाकुंभ में 40 करोड़ लोग हिस्सा लेंगे।